Tuesday 7 October 2014

                                                            मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री
 प्रधानमंत्रीजी पधार रहे हैं। आज का दिन अहम है। मध्यप्रदेश के लिए। उससे ज्यादा मुख्यमंत्री के लिए। भाजपा की राजनीति में लालकृष्ण आडवाणी खेमे के हैं शिवराजसिंह चौहान। तभी तो नरेंद्र मोदी से रुष्ट आडवाणी लोकसभा जाने के लिए मध्यप्रदेश आना चाहते थे। मध्यप्रदेश के कई आयोजनों में आडवाणी उन्हें आशीर्वाद देने आते रहे हैं। हमने दोनों हाथों को चरणों तक ले जाते हुए उनके आदर में झुके शिवराज को अनगिनत बार देखा है। छोटे-बड़ों के बीच यह संस्कार की बात है। भाजपा से इसकी अपेक्षा यूं ही नहीं होती।
  पिछले विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी प्रचार के लिए मध्यप्रदेश आएं या नहीं? शिवराज का यह डर लाजमी माना गया था कि मोदी के आने की सूरत में मुस्लिम बहुल सीटों का गणित फेल हो सकता है। हालांकि ऐसे मौके पर उन्हें अपने काम पर सबसे ज्यादा भरोसा जाहिर करना चाहिए था। यह और बात है कि वे खुद 120 सीटों से ज्यादा उम्मीद नहीं कर रहे थे। आडवाणी के सिपहसालार को बिगुल फूंकना जरूरी था। मगर यह क्या? मध्यप्रदेश में 160 से ज्यादा सीटें? यह किसका चमत्कार था।
 राजनीति कितनी अनिश्चितताओं से भरा खेल है? कुलमिलाकर एक साल के आसपास ही तो हुआ है। भाजपा में मोदी का प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में आगे किया जाना। उनका धुआंधार अभियान। यूपीए के परखच्चे उडऩा। मोदी की शपथ। आडवाणी और जोशी को सत्ता के व्यस्त कार्यालय से बलपूर्वक प्रदान स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति। पहली बार आने पर लोकसभा की दहलीज पर झुका उनका माथा। मंत्रियों और अफसरों की पस्ती। भूटान, नेपाल, जापान और अमेरिका की हॉलीवुड साइज प्रस्तुति। मीडिया की मस्ती।
 अब इस चकाचौंध कर देने वाले वैश्विक वातावरण में राजनीति में उनके ही समकक्ष सखा, अपने राज्य में तीन बार के लोकप्रिय मुख्यमंत्री शिवराज गूगल मैप पर कहां हैं? वे माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी की पावन उपस्थिति में लक्ष्मीपुत्रों को मना रहे हैं। लक्ष्मीपुत्रों के लिए मोदी गारंटी कार्ड हैं। शिवराज के लिए राजनीति का नवीनीकृत राशन कार्ड। अमेरिका यात्रा की असीम ऊर्जा से ओतप्रोत नरेंद्र मोदी का एक घंटे के लिए मध्यप्रदेश की धरती पर आगमन यहां दिवाली का वातावरण बना रहा है। मोदी की शपथ के बाद आडवाणी का अकेलापन और गहराने वाली पहली घटना।
 प्रभुजी मोरे अवगुण चित न धरो। मानस पढ़ा नहीं है। मां से सुना है। ऐसी ही कुछ पंक्ति है, जब भगवान से यह मनुहार की जा रही है कि वे गलतियों पर ध्यान न दें। उदारतापूर्वक अपनी कृपा बना रखें। सच्चे भक्त का यह अधिकार है। मोदी की मौजूदगी शिवराज के लिए आने वाले कल की बीमा पॉलिसी है। शर्तेें लागू।
 कौन जाने आडवाणी प्रधानमंत्री बने होते तो निवेशकों की गारंटी कौन लेता? मोदी की शपथ के पहले गुजरात के एक पत्रकार ने निजी बातचीत में कहीं मध्यप्रदेश को बागियों का अड्डा कहा था। लोकसभा चुनाव में गांधीनगर से प्रस्थान की स्थिति में भोपाल का कन्फर्म टिकट आडवाणी को आसान था। सुषमा यहां पहले से हैं, जो केबिनेट में नंबर दो पोजीशन को लेकर रूठकर विदिशा चली आईं थीं। खुद शिवराज मोदी के नाम पर मुस्लिम वोटों के बिदकने का डर दिखा चुके थे। बहरहाल उन मित्र की नजर में मध्यप्रदेश के मायने थे मोदी के मुखालिफों को खाद-पानी, इज्जत, हिफाजत और पुख्ता ठिकाना।
 मैं मानता हूं कि दिमागी तौर पर अति सक्रिय पत्रकार कई पेंच खुद पैदा कर लेते हैं। मजे लेते हैं। पुडिय़ा बांटते हैं। हर नेता किसी न किसी बड़े नेता की टीम में शामिल होता ही है। किसी और समय किसी और की टीम होती है। शिवराज आडवाणी से जुड़े थे। आडवाणी का भी अखंड आशीर्वाद अपने सीधे सहज सरल शिष्य शिवराज पर रहा। शिवराज ने भी मुख्यमंत्री बनने के बाद हर बड़े मौके पर उन्हें बराबर याद रखा। शिवराज को कम करके आंकने वाले किसी भी उत्पाती की हिम्मत नहीं थी कि वह शिवराज की शिकायत लेकर दिल्ली जाता। तय था कि आडवाणी उसके ही कान उमेठ कर इंदौर-भोपाल लौटा देते।
 प्रगाढ़ रिश्ते एक दिन में नहीं बनते। आडवाणी के आंगन में यह शिवराज की सालों की कमाई थी। प्रमोद महाजन ने भी इस समीकरण को मजबूत करने में सक्रिय भूमिका निभाई थी। नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री अलग हालात में बने। मध्यप्रदेश में शिवराज का आना अलग संयोग से हुआ। तब दोनों पर आडवाणी की कृपा समान थी। आजादी के बाद देश में मोदी अकेले मुख्यमंत्री हैं, जो अपनी तूफानी एकल प्रस्तुति के जरिए सीधे प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे। उन्होंने सिद्ध किया कि गुजरात उनके लिए एक शानदार लांच पैड था। शिवराज के खाते में ऐसा कोई करिश्मा याद करना होगा। दिग्विजयसिंह के दस वर्षीय प्रयासों के फलस्वरूप गर्त में गिरे एक राज्य को उठाने के लिए सिर्फ उनकी नेकनीयत ही काफी नहीं थी। रही-सही कसर उनके घरवालों और करीबियों ने पूरी कर दी। दिल्ली का शायद ही कोई प्रभावशाली कार्यालय बचा हो, जहां जून महीने में व्यापमं घोटाले की विस्तृत फाइल न पहुंची हो।
 दिग्विजयसिंह के जमाने के ग्राम संपर्क अभियान की तरह इन्वेस्टर्स मीट का सिलसिला शिवराज ने शुरू से ही चलाया हुआ है। इवेंट मैनेजरों की एक टीम तंबू यहां से उखाडक़र अगले शो के लिए अगली जगह पर चली जाती है। इसमें नेता, अफसर और उनके सलाहकारों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। भोपाल का कोई भी राजनीतिक संवाददाता इस बात के आंकड़े देगा कि इन जलसों पर कितना पैसा खर्च हुआ और बीते वर्षों में जमीन पर काम कितना हुआ?
 रामकृष्ण कुसमरिया नाम के एक उदासीन प्रवृत्ति के सज्जन पुरुष लगने वाले नेता कृषि मंत्री थे, जब खेती को फायदे का धंधा बनाने का नारा लगा था। नारे का मतलब बड़े शहरों में दर्शनीय चंद बड़े होर्डिंग। हरे-भरे खेत की तस्वीर। मुख्यमंत्री का मुस्कराता हुआ चेहरा। मैं खुद गांव से हूं। किसान कुछ अपने कर्मों से और कुछ सरकारी सिस्टम के कारण आज भी उतने ही परेशान और तंग हैं, जितना पहले थे। तहसील स्तर पर भ्रष्टाचार भयावह है। बेकाबू। एक नया विधायक शिक्षा विभाग के तहसील स्तर पर तैनात कर्मचारियों से भी कुछ नियमित दक्षिणा की प्रार्थना कर सकता है। एक से लेकर तीन सौ करोड़ की दौलत के मालिक चपरासी, क्लर्क, डॉक्टर, आईपीएस और आईएएस पति-पत्नी की श्रृंखला देश भर के अखबारों के पहले पन्ने पर जगह बनाती रही है।
 अब ग्राउंड पर आइए। लंबे वनवास को भोगने के बाद उमा भारती दिल्ली में हैं। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी से बेदखल होने के घाव गहरे हैं। प्रभात झा राज्यसभा में विराजमान हैं, जो दूसरी बार मध्यप्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष बनने से वंचित कर दिए गए थे। उनके अत्यधिक परिश्रम को उनकी जरूरत से ज्यादा तेज रफ्तार माना गया। शांत रहते तो संगठन भले ही अपनी गति को प्राप्त होता मगर उनकी सुरक्षा की गारंटी तय होती। कप्तानसिंह सोलंकी को राजनाथ ने हरियाणा में तोपों की सलामी लेने के लिए नियुक्त कर दिया। मगर सबसे महत्वपूर्ण और सबसे मौन अनिल माधव दवे भी दिल्ली में हैं, जिन पर मोदी का भरोसा दूसरों से ज्यादा है। मैं नहीं जानता कि शिवराज यह चित्र देखकर बेचैन होते होंगे या नहीं, जिनके एक मंत्री, कई अफसर और परीक्षाएं देने वाले अनगिनत बेटे-बेटियां अपने पूज्य पिता सहित जेलों में बंद हैं।
 नरेंद्र दामोदरदास मोदी प्रधानमंत्री के रूप में मध्यप्रदेश में हैं। शिवराज उसी माइक पर मोदी के गुण गाएंगे, जो अब तक आडवाणी की स्तुति सुनता आया है। उस बेजान का काम सुरों को लाउड स्पीकर तक पहुंचाना है ताकि जमाना सुन ले। वे पहले वाले सुर हों या बदले हुए। उसे क्या फर्क पड़ता है? मोदी की मुद्रा भी यह जाहिर करेगी कि आदमी को अपनी ताकत का अहसास होना चाहिए। उसे अपनी कमजोरियों का पता सबसे पहले होना चाहिए। दूसरे की दम पर इतराना नहीं चाहिए। हर हाल में हिसाब-किताब में रहना चाहिए।

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