Saturday 25 October 2014

                                                          तूफान से तबाह
 दो हफ्ते हो गए। विशाखापत्तनम में तूफान की तबाही ने कुछ भी साबुत नहीं छोड़ा है। दीपावली के ठीक पहले चार दिन मैं वहां रहा। मगर एक भी आदमी सरकार के प्रति शिकायत से भरा नहीं मिला। यह हैरत की बात थी। ऐसे मौकों पर आमतौर पर सबसे ज्यादा लोग सरकार से ही खफा होते हैं। इसकी वजह मुझे कलेक्टर ऑफिस में देखने को मिली, जहां मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने पिछले एक हफ्ते से कैम्प किया हुआ था। वे किसी दफ्तर में नहीं बैठे। कहीं होटल या सर्किट हाऊस में नहीं रुके। न ही अपने चमचों से घिरे घूमते रहे।
 तूफान के थमते ही आए। एक बस में रुके। वहीं सुबह नौ बजे से रात दो बजे तक काम करते। गांव जाते। शहर का मुआयना करते। संबंधित विभागों के सारे मंत्री और आरामतलब अफसर मजबूर होकर चिलचिलाती धूप में मैदान में मौजूद रहे। आम पब्लिक में से कोई भी उनसे आकर मिल सकता था। लीडर को इस रूप में पूरी सरकार आ जुटी। आरामतलब अफसर बस्तियों में दौड़ते-भागते नजर आए। मैंने नायडू ने अलग से मुलाकात की। बस में रुकने और मीटिंग करने के बारे में उन्होंने ने कहा, ‘यह मुश्किल ऑफिस में बैठकर हल होने वाली नहीं थी। फिर  तो मैं हैदराबाद के सचिवालय में मीटिंग करता। मुझे मैदान में होना ही चाहिए था।’



 एबीपी न्यूज चैनल के हमारे मित्र ब्रजेश राजपूत मुझसे पहले विशाखापत्तनम जा चुके थे। उनसे कुछ जानकारियां लेकर मैं भी गया। हर साल छोटे-बड़े करीब तेरह तूफान उठते हैं यहां। मगर पहली बार किसी ने शहर पर सीधा हमला बोला। दो सौ किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से जब बवंडर चला तो चौबीस घंटों तक बीस लाख लोग बंद घरों में दिल थामे बाहर का शोर सुनते रहे थे। जब दरवाजे खुले तो बरबादी के निशान सामने थे। शहर की खूबसूरती उजड़ चुकी थी। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश एयरफोर्स में रहे 92 वर्षीय के. जगन्नाथराव कहते हैं, ‘कुदरत का ऐसा कहर किसी ने इसके पहले कभी नहीं देखा था।’

 सोमवार, तेरह अक्टूबर की सुबह से ही शहर एक ऐसे बड़े घर में बदल गया, जहां बीस लाख लोग एक साथ रहते हैं। हर कोई साफ-सफाई में लगा है। मछुआरों की बस्तियों में मिलजुलकर नावों की मरम्मत की जा रही है। बिजली के खंभे सीधे खड़े किए जा रहे हैं। हजारों बंद कारखानों में नए सिरे से शुरू करने की हलचल है।
  प्रदेश के सबसे बड़े औद्योगिक शहर में इस बार दिवाली की बंपर खरीददारी के आंकड़ों की जगह दूसरे ही आंकड़ों की चर्चा है। करीब 70 हजार करोड़ के नुकसान का अंदाजा है। 27 हजार बिजली के खंभे धराशायी हैं। 8000 किलोमीटर लंबी बिजली की लाइनें खराब हुई हैं। 7300 ट्रांसफर टुकड़े-टुकड़े हो गए। 80 लाख पेड़ उखड़ गए। आसमान सुनसान है। भूला-भटका शायद ही कहीं कोई परिंदा दिखे। जो भी था गुजर गया। सबको बड़ी राहत यही है कि चार दिन पहले से लोग तूफान से खबरदार थे। इसलिए जानमाल का उतना नुकसान नहीं हुआ। महफूज लोग जब घरों से निकले तो पूरा शहर ही एक घर बन गया। युवाओं ने अपने मोहल्ले संभाल लिए। कुछ दूसरी गलियों में गए। सब मिलकर शहर को साफ कर रहे थे। जिन बस्तियों में नुकसान ज्यादा हुआ, वहां मदद पहुंचा रहे थे। त्योहार के समय आई मुसीबत एक ऐसा इम्तहान बन गई, जिसमें हर कोई अव्वल आया।
 समुद्र से सटी कैलाशगिरि की हरी-भरी पहाडिय़ां उजाड़ हैं। इलाके में लाखों पेड़ सूखे कंकालों की तरह बिखरे हैं। शहर के सबसे व्यस्त मॉल सीएमआर सेंट्रल में दिन भर लोगों की लंबी कतारें हैं। इधर दिवाली की खरीददारी नहीं चल रही। लोगों के हाथों में पटाखे नहीं, पौधे हैं। वृक्षों की नौ प्रजातियों के करीब 25 हजार पौधे रोज बटे। हर तबके के लोग आए। उनके नाम और फोन नंबर दर्ज किए गए। सीएमआर के कर्ताधर्ता एम. वेंकटरमण ने बताया कि हम हर तीन, छह और नौ महीने में पौधों की प्रगति फोन पर पूछेंगे। जाकर तस्वीरें लेंगे। पौधों की अच्छी परवरिश करने वालों को खरीददारी पर खास रियायत होगी। वक्त लगेगा मगर हम हरियाली को वापस लाकर हुदहुद को जवाब देंगे।

  विशाखापत्तनम की खास पहचान है चार मिलियन टन उत्पादन क्षमता का स्टील प्लांट। फिलहाल यह इंसान के इस्पाती इरादों का जीता-जागता नमूना है। तूफान के बाद का आकलन था कि उत्पादन शुरू होने में कम से कम चार हफ्ते लगेंगे। मगर सिर्फ छह दिन में ही शुरू हो गया! 15 में से चार यूनिटें इस्पात ढाल रही हैं। हर दिन 12 हजार टन हॉट मैटल के उत्पादन के लिए ढाई सौ मेगावॉट क्षमता का बिजलीघर यहीं है। कॉर्पोरेट कम्युनिकेशन में डिप्टी मैनजर के. बंगार राजू बताते हैं, ‘ताकतवर तूफान कुछ रुकावटें ही लाया। नायडू ने हमें 50 मेगावॉट बिजली दी। इससे हमें प्लांट शुरू करने में आसानी हुई। वे पल हमारे लिए दिवाली जैसे थे। चालीस हजार कर्मचारियों के चेहरे खिल उठे थे।’ दिवाली के मौके पर लोग नायडू के साथ समुद्र किनारे मोमबत्तियां लेकर हजारों लोग चुपचाप गुजरे। यह बताने के लिए कि हम जिंदा हैं। सब कुछ फिर जुटा लेंगे।

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