Wednesday 7 January 2015

धर्म की मूल प्रति


प्रिय धर्मप्रेमी जनता,
 अब तक कुंडलिनी जागरण के संबंध में पुस्तकों में ही पढ़ा था। कभी-कभी ध्यान करता हूं मगर ऊर्जा एक चक्र के आसपास भी नहीं पहुंच सकी है। कुंडलिनी जागरण के समय अनुभूति क्या होती है, इसका भी कोई अनुमान नहीं है। अनेक विद्वानों को सुना। कुंभ में भटका। आश्रमों में गया। मगर कोई लाभ नहीं हुआ। तीन दिन पहले शरीर के भीतर के सातों चक्र हिल गए। आचार्यश्री असदुद्दीन औवेसी के मंगल विचार सुने तो जीवन में प्रथम अवसर आया जब धर्म का तत्वज्ञान आत्मसात हुआ। महाज्ञाता 1008 औवेसीजी ने कहा कि हर मनुष्य जन्म से मुसलमान है। मां-बाप उसे दूसरे धर्म में परिवर्तित करने का महापाप कर रहे हैं। और इसलिए इस्लाम समस्त धर्मों का असली घर है।
आचार्यजी के इस कथन ने कुछ प्रश्न अवश्य उत्पन्न कर दिए। ईश्वर पहली बार बड़ा मजाकिया किस्म का मालूम हुआ। वह दस हजार साल से दुनिया में धर्मों की फोटो प्रतियां ही भेजे जा रहा था। हिंदू, यहूदी, ईसाई, बौद्ध और जैन समेत अनेक धर्म पिछले दस हजार साल में आए। ये सब फोटो कॉपियां थीं। मूल प्रति उसने सबसे बाद में भेजी। संभव है संसार का हिसाब-किताब और दुनिया भर के दस्तावेज सहेजने में उसने कहीं यहां-वहां रख दी हो और भूल गया हो। फिर अचानक धरती पर ईसा की सातवीं सदी में उसे वह खाेई हुई असल प्रति प्राप्त हुई और उसने तत्काल सऊदी अरब के रेगिस्तान के पते पर उस प्रति को भेजने का उत्तम कार्य किया। उसके उपरांत क्या हुआ, यह इतिहास की पुस्तकों में रक्त की लाल स्याही से लिखा है। चूंकि हम असली धर्म के मानने वाले हैं, जो शांति का प्रतीक है। इसलिए इस विषय पर हम चर्चा भी नहीं करेंगे।
 जब ईश्वर ने भूल सुधार करते हुए धर्म की मूल प्रति अरब के पते पर भेजी तो वहां की जनता-जनार्दन के लिए यह सृष्टि का सबसे अनमोल उपहार था। सचमुच वे धरती के सबसे भाग्यवान समुदाय सिद्ध हुए, जिन्हें खुद ईश्वर ने चुना। ईश्वर ने भारत, चीन, इजरायल या जापान में मूल प्रति किसी के पास नहीं भेजी। उसे अवश्य यह भय रहा होगा कि यहां के भटके हुए लोग इसे भी फोटो कॉपी समझ लेंगे। कोई यह विश्वास ही नहीं कर पाएगा कि यह मूल प्रति है। इसलिए इसे नए पते पर भेजना उचित है। बाकी का कार्य ये लोग कर ही लेंगे और अपना सर्वस्व बलिदान करके भी संसार को यह महासत्य बताने में  सदियों तक पूरी शक्ति लगाएंगे कि यही असली और मूल प्रति है।
 सातवीं सदी में सत्य के ईश्वर के उस महान‌ प्रयोग के बाद आती है सीधी इक्कीसवीं सदी। साल 2015। महीना जनवरी। तारीख दो-िदन पहले। स्थान भारत भूमि का महानगर हैदराबाद, जिसका पुराना नाम भाग्यनगर ही था। हम हैदराबाद में न होते हुए भी परम भाग्यशाली हैं कि इस दिन को देखने के लिए जगत में जीवित रहे, जब आचार्यश्री औवेसी ने उस सत्य का उदघाटन एक बार पुन: किया। तो भक्तजनों, आप समझ ही गए होंगे कि धर्म की मूल प्रति हमारे आचार्यजी के पास है। आप सब तत्काल प्रभाव से अपनी दीवारों पर टंगी फोटो कॉपियां फेंक दीजिए और इस पुण्य अवसर पर चेत जाइए।
अगर कोई असली बात आपको बताए और बार-बार बताने के पश्चात भी आपकी समझ में न आए तो क्रोध नहीं आएगा? गुस्से में िहंसा ही होगी। जो लोग हिंसा के माध्यम से 1400 साल से एक सरल तथ्य संसार के गले में उतारने का प्रयत्न कर रहे हैं, वे कहां गलत हैं? लेकिन वही सरल बात हमारे आचार्य औवेसी ने कितने उम्दा तरीके से बता दी। मात्र दो-तीन वाक्यों में। यही ताे परमज्ञान का प्रमाण है। तो एक बार जयकारा लगाइए, आचार्यश्री श्री 1008 औवेसीजी महाराज की जय।
 एक तकनीकी प्रश्न आचार्यजी से पूछना था, जब भी हैदराबाद में उनके आश्रम में जाने का योग बनेगा अवश्य पूछूंगा। जब हर मनुष्य जन्म से मुसलमान होता है और मां-बाप उसे दूसरे धर्म में भगा ले जाते हैं तो बालक के जननांग की जन्म से कटी हुई त्वचा को वे कैसे जोड़ देते होंगे। हे ईश्वर उन माता-पिताओं को क्षमा करना। वे नहीं जानते कि वे क्या फ्राड कर रहे हैं?

कालसर्प योग

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