Tuesday 7 October 2014

                                                              हुनर की रोशनी
श्रवणबेलगोला। मैसूर से 90 किलोमीटर दूर है। एक ही चट्टान पर रचा वास्तु और स्थापत्य का चमत्कार। सबसे ऊपर 57 फुट ऊंची भगवान बाहुबली की आकर्षक प्रतिमा। नौंवी सदी में गंग राजाओं के एक सेनापति चामुंडराय ने इसे बनवाया था। चामुंडराय की मां उन्हें प्यार से गोम्मट कहती थीं यानी पराक्रमी और शूरवीर। इन्हीं गोम्मट के कारण भगवान बाहुबली को गोम्मटेश कहा गया। गोम्मट का ईश्वर।

    सन् 981 ईस्वी में यह प्रोजेक्ट पूरा हुआ था। मुझे याद है कि 1981 में इसके एक हजार साल पूरे होने पर महामस्तकाभिषेक हुआ था। तब मैं स्कूल में पढ़ता था। बचपन में कुछ पत्रिकाएं घर आती थीं, जिनमें उस जलसे की तस्वीरें छपी थीं। अवचेतन में वे ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीरें और भीड़भाड़ अब तक ताजा थी। साक्षात् दर्शन तो शब्दों के परे हैं। उस जमाने में कन्नड़ कवि बोप्पण ने गोम्मटेश की स्तुति लिखी थी। सात फुट ऊंचे शिलालेख पर 67 पंक्तियों की वह पुरातन स्तुति मंदिर परिसर में ही दर्शनीय है। इससे भी बड़ा एक ऐसा ही शिलालेख मैंने मैसूर विश्वविद्यालय के भाषाई अध्ययन विभाग में देखा।
 तालकड नाम की एक जगह है कावेरी नदी के किनारे। मैसूर से दूसरी दिशा में करीब 50 किलोमीटर के फासले पर। यहां कई सदियों तक कई राजवंशों ने बेहिसाब निर्माण कराए थे। स्थापत्य कला के हैरतअंगेज नमूने। राजपरिवार की एक महिला के अभिशाप की कहानियां हैं, जिसके तहत तालकड रेत में समाने वाला था और मैसूर के वाडियार राजाओं को निस्संतान रहना था। तालकड का बड़ा हिस्सा आज भी रेत में दफन है। करीब 40 साल पहले कुछ मंदिरों को रेत के बाहर निकाला गया। यहां गंग, होयसला और चोल राजाओं के बनवाए अनगिनत मंदिर हैं। कारीगरी के ऐसे बेहतरीन प्रयोग कि आपको अपनी आंखों पर भरोसा ही न हो।
 होयसला राजाओं की राजधानी हलेबीड भी मैसूर से सौ-सवा सौ किलोमीटर ही है। दिल्ली के निर्दयी सुलतानों में अलाउद्दीन खिलजी का सेनापति मलिक कफूर यहां तक पहुंचा। इसलिए हलेबीड के आसपास के मंदिर खंडित कर दिए गए। उसकी लूट के भयंकर वृत्तांत हैं। मगर तालकड का इलाका बच गया। सुलतानों के समय के लेखक इस इलाके को द्वार समुद्र कहते हैं। कफूर ने ही बाद में अलाउद्दीन के बच्चों को बहुत बुरी मौत मारा। जब दिल्ली में नई ताकतें ऐसे खूनखराबे से अपने जड़ों को सींच रही थीं, तब दक्षिण के लोग इतिहास को अपने हुनर की रोशनी से चमकाने में लगे थे।
 श्रवणबेलगोला हो या तालकड। हमारे महान् पूर्वजों की चमत्कारी प्रतिभा के ये प्रमाण भारत से गुजरे हजार साल के झंझावातों से बचे रह गए। यह भी एक चमत्कार ही है..

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