Saturday 8 November 2014

                                                 हंगामा है क्यूं बरपा
केरल जैसे अनुशासित मदिरा प्रेमी शायद ही कहीं हों। शाम ढलते ही लंबी कतारों में खड़े। प्रेमपूर्वक एक दूसरे का हाल पूछते। शांति से अपनी बारी का इंतजार करते। विजेता भाव से खिडक़ी पर पहुंचते। पसंदीदा ब्रांड की बोतल कागज में लपेटते। मुस्कराते हुए बाहर आते। मगर अब इस मुस्कराहट की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। मदिरालयों के इस मनोरम दृश्य पर दस साल में परदा गिर जाएगा। छह महीने में चौथी बार आने का मौका मिला।

 दूर दक्षिण के इस राज्य में शराब सिर्फ सरकारी दुकानों पर बिकती है। आमदनी-सालाना नौ हजार करोड़ रुपए। इसकी परवाह न करते हुए मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने कुछ अहम फैसले लिए हैं। जैसे-हर साल 10 फीसदी दुकानों को बंद किया जाएगा। इस गांधी जयंती पर 338 में से 33 दुकानों पर ताले डल गए। यानी अगले दस साल में पूर्णत: मदिरा मुक्ति। तब तक रविवार को सभी दुकानें बंद रहेंगी यानी साल में 52 सूखे दिन!
 चांडी ने ये फैसले तो अभी लिए मगर प्राइवेट होटलों के बार को बंद करने के कदम ने देश में सबसे ज्यादा मदिरा की खपत वाले इस छोटे से खूबसूरत राज्य की राजनीति में भूचाल ला दिया है। शुरुआत हुई मार्च में, जब घटिया सेवाओं के चलते 418 बार बंद किए गए। दो हफ्ते पहले सरकार ने बचे हुए होटलों के 320 बार भी बंद करने का फैसला लिया। यानी अब शाम की सारी रौनक सिर्फ चार और पांच सितारा होटलों के 65 बार में ही सिमटकर रहने वाली है।

  ताकतवर होटल बार ऑनर्स एसोसिएशन के लिए यह सब्र की इंतहा थी। पिछले हफ्ते हंगामा तब मचा जब एसोसिएशन के कार्यकारी अध्यक्ष और केरल के मशहूर होटल कारोबारी डॉ. बीजू रमेश ने वित्त मंत्री के.एम. माणि के सिर ठीकरा फोड़ा। उन्होंने आरोप जड़ा कि बार एक बार फिर शुरू करने की गारंटी के बदले माणि ने पांच करोड़ रुपए मांगे थे। दो किश्तों में एक करोड़ रुपए उन्हें दिए गए। अब सियासत में तूफान आया हुआ है। सीपीएम सीबीआई जांच की रट लगा रही है। एंटी करप्शन ब्यूरो ने पड़ताल शुरू कर दी। अपने 50 साल के राजनीतिक करिअर में पहली बार 80 वर्षीय नेता माणि मुश्किल में फंसे। अब प्याले पीछे छूट गए हैं। पांच करोड़ की सुर्खियों के साथ माणि चमक रहे हैं। मदिरा मुक्ति के पवित्र प्रयासों में कहानी का यह मोड़ माणि के लिए खतरनाक साबित हुआ।
  प्रश्न यह है कि तीन साल पुरानी ओमन चांडी की यूडीएफ सरकार का मन अचानक शराब से क्यों भर गया? इतने कड़े फैसले लेने की नौबत आई क्यों? इसके मूल में है सिर्फ एक शख्स और वो हैं वीएम सुधीरन। देश के बाकी राज्यों में भले ही कांग्रेस और उसके नेतृत्व की हालत खस्ता हो मगर शराबखोरी के कारण कई तरह की सामाजिक और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं झेल रही ‘गॉड्स ओन कंट्री’ में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुधीरन ने शराब के खिलाफ खुलकर मुहिम चलाकर जबर्दस्त साख कमाई। बावजूद इसके कि इस कारोबार पर उनके अपने इरवा समुदाय का ही वर्चस्व है।
 लोकसभा चुनाव के ठीक पहले साफ-सुथरी छवि के सुधीरन को कांग्रेस की कमान सौंपी गई थी। वे शुरू से ही केरल को मदिरा मुक्त करने के हिमायती थे। मगर चांडी सख्त फैसले लेने में हमेशा हिचके। मुख्यमंत्री की मंशा पर भी सवाल उठने लगे। तब कहीं जाकर उन्होंने मार्च में 418 बार बंद किए। होटल बार मालिक इन्हें शुरू करने की फिराक में थे। यह किसी से छुपा हुआ नहीं है कि सरकार पर दबाव बनाने के लिए इन कारोबारियों ने वित्त मंत्री माणि से पींगे बढ़ाई थीं।
 अल्प बहुमत वाली यूडीएफ सरकार में सहयोगी वित्त मंत्री की पार्टी केरल कांग्रेस के नौ विधायक हैं। सियासी गलियारों में चर्चे आम हैं कि  महात्वाकांक्षी माणि 68 विधायकों वाले एलडीएफ के संपर्क में भी थे। कठोर फैसले लेने में अब तक सुस्त रहे ओमन चांडी के लिए यह खतरे की घंटी थी। उन्होंने एक झटके में महफिल लूट ली। नई नीति घोषित करके राज्य को 2025 तक पूर्णत: मदिरा मुक्त करने के उनके उद्घोष ने सुधीरन को तो चौंकाया ही। माणि अलग झमेले में जा उलझे। मगर फिलहाल शराब की दुकानों पर कतार अटूट है। बोतल के लिए अपनी बारी का इंतजार करते मदिरा प्रेमी  चटखारे ले-लेकर सियासत में मचे हंगामे पर गुफ्तगू कर रहे हैं। उन्हें कल की परवाह नहीं है। आज का इंतजाम हो जाए। 2025 किसने देखा है!
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एक साल में गटक जाते हैं..
22 करोड़ लीटर शराब
8.43 करोड़ लीटर बीयर
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