Monday 10 November 2014

                                                             चेन्नई में पोजाई
 चार दिन पहले फेसबुक पर एक तमिल फिल्म ‘पोजाई’ का पोस्टर देखा। दिलचस्पी इसलिए हुई कि मशहूर फिल्म एक्टर मुकेश तिवारी इसमें नजर आ रहे थे। मैं संयोग से त्रिवेंद्रम में था और चेन्नई के लिए रवाना हो ही रहा था। चेन्नई पहुंचा तो होटल में सबसे पहले इसी फिल्म के बारे में बात की। यह सुपर हिट मूवी है। मुकेशजी के कारण ही इसे देखने की इच्छा हुई मगर पता चला कि हाउस फुल है। आखिरकार एक टिकट मिल गया। तमिल के लोकप्रिय अभिनेता विशाल की यह एक मसाला मूवी है। श्रुति हासन उनकी हीरोइन हैं।


 सच कहूं तो मैं त्रिवेंद्रम में शाहरुख खान की तमाम कचरा फिल्मों में सबसे ताजी हैप्पी न्यू ईयर देखकर जख्मी हालत में लौटा था मगर चेन्नई में पोजाई देखकर बड़ी क्षतिपूर्ति हुई। सिनेमा के सशक्त माध्यम में भाषा कोई बड़ी समस्या नहीं होती। फिर इस फिल्म के दूसरे ही शॉट में मुकेश तिवारी अपने लाजवाब अंदाज में आए तो आसानी हुई। मुकेश इसमें तमिल के तमाम अदाकारों पर भारी हैं। साधारण शक्ल-सूरत वाले नायक विशाल पर भी। श्रुति कोयले की खदान में रखे सुर्ख गुलाब की तरह हैं।
 एक्शन से भरपूर इस पारिवारिक मसाला मूवी में सारे कलाकारों को खेलने का भरपूर मौका मिला। विशाल और श्रुति के प्रेम प्रसंग युवा दर्शकों को गहरी सांसें लेने को मजबूर करते। कॉमेडियन सूरी पर कई सीन हैं और वे हर बार हंसा-हंसाकर लोटपोट करते हैं। खासकर बच्चों को। मगर जैसे ही मुकेश तिवारी परदे पर आते दर्शकों को सांप सूंघ जाता। एक अच्छी-भली कहानी में उथल-पुथल मचाने वाले निर्दयी विलेन के रोल में मुकेश खूब फबे हैं। उन्होंने अपने लिए मिले हर सेकंड में जान डाली है। हर शॉट और हर डायलॉग में उनका किरदार सब पर बीस रहा। मेरे पड़ोस में बैठे कॉलेज के कुछ युवाओं से मैंने राय जाननी चाही। जानकर अच्छा लगा कि तमिल में मुकेश तिवारी को न सिर्फ सब भलीभांति जानते हैं बल्कि उनके लिए आम राय है-वेरी पावरफुल एक्टर। अपने क्लोज शॉट्स में वे साठ के दशक के प्राण की तरह परदे पर कहर ढाते हैं। आंखें पतली करके जब वे तमिल में बोलते हैं तो थिएटर का शोरगुल थम जाता है। उन्नत ललाट, मोटी मूंछे और पतली आंखों के जरिए उनका चेहरा खासा असर पैदा करता है।
 तमिल की कहानी में पटना कनेक्शन दिलचस्प है। दरअसल मुकेश महाशय का किरदार दक्षिण में अपना जलवा कायम करने के पहले पटना के कलेक्टर का सरेआम कत्ल करके रफूचक्कर होता है। कलेक्टर का संक्षिप्त रोल बिहार के संस्कृति मंत्री विनय बिहारी ने किया। ठीक उसी तरह जिस तरह प्रकाश झा की भोपाल में फिल्माई गई एक फिल्म में कुछेक सेकंड के लिए यहां के एक सीनियर आईएएस अफसर लटक लिए थे। तो मुकेश तिवारी का किरदार पटना से फरार होकर दक्षिण में और बड़े रूप में अन्नम तांडवम् की शक्ल में प्रकट होता है। अपने गुुर्गों से घिरा। अच्छे-भले लोगों के रास्ते में तकलीफें बोता।

 दक्षिण की फिल्मों में संगीत यानी कुछ ऐसा जो थिएटर की दीवारों को कंपा दे और छत को हिला दे। इस फिल्म में भी बिल्कुल यही था। तमिल में सिनेमा एक जबर्दस्त जलसे की तरह है। जब उत्तर भारत में दीपावली के दिन लोग त्योहार की रौनक में डूबे होते हैं तब तमिलनाडु में अनिवार्य रस्म की तरह हर परिवार फिल्म देखने जरूर जाता है। यहां नामी सितारे अपनी फिल्मों को दिवाली के दिन ही रिलीज करते हैं। पोजाई भी इसी महीने रिलीज हुई और खूब पसंद की गई। तमिल के अखबारों में तीन स्टार के साथ तारीफ मिली। यहां अदाकारों का जादू इस कदर सिर चढक़र बोलता है कि उनके फेंस क्लब अपने प्रिय कलाकारों के मंदिरों की प्राण प्रतिष्ठा कर डालते हैं। एमजीआर और उनके बाद जयललिता परदे की ताकत के बूते ही सियासत में अब तक हिट हैं।
 लोकसभा चुनाव के समय मैं दो सप्ताह तमिलनाडु में था। तब तमिल के जानेमाने कॉमेडियन वडिवेलु की फिल्म तेनालीरामन् राजसी अंदाज में रिलीज हुई थी। इसे मैं चाहकर भी देख नहीं पाया था। वडिवेलु ने पिछले विधानसभा चुनाव में डीएमके का साथ दिया था। मैंने मदुरई में अलागिरी के साथ उनकी सभाएं देखी थीं। जयललिता सत्ता में आईं तो वडिवेलु लंबे समय तक तमिलनाडु की सीमा में नजर नहीं आए थे। अम्मा के सामने सरेंडर के बाद ही अगली फिल्म तेनालीरामन् बना पाए थे।
 खैर, मध्यप्रदेश मूल के मुकेश तिवारी को उनकी अदाकारी की तारीफ करते चेन्नई के दर्शकों के बीच खुद को पाकर अच्छा लगा। सही समय पर फेसबुक पर दिखाई दिए पोस्टर के लिए दिल से शुक्रिया। उफ्, शाहरुख खान! भाई मियां हिंदी सिनेमा में इतने साल के अनुभव की कमाई किस कचरे में डाल रहे हो! भाषा की अड़चन के बावजूद पोजाई मेरे लिए हैप्पी न्यू ईयर की भीषण गंदगी से निकलकर एक शानदार शॉवर की तरह थी। शुक्रिया मुकेशजी।

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