Saturday 15 November 2014


                                                       किडनी पर कहर
केस-1
परीता बंडिया की उम्र है सिर्फ 15 साल। वह दसवीं की छात्रा है। घर में कमाने वाली उसकी मां है। एक भाई है, जो पढ़ता है। पिता कुछ नहीं करते। फरवरी के महीने में हाई ब्लड प्रेशर की वजह से परीता पर मुश्किलों का पहाड़ टूटा। उसकी दोनों किडनी फेल हो गईं। अब वह हफ्ते में दो बार डायलिसिस के सहारे है। अस्पताल तक लाने-ले जाने का जिम्मा भी उसकी मां पर है।
केस-2
26 साल की नीति जैन। पिता का छोटा सा कारोबार है। घर में तीन सदस्य हैं। उसे पीलिया हुआ था। जनवरी 2014 में पीलिया के इलाज के दौरान उसकी भी किडनी खराब हो गईं और डायलिसिस पर जाना पड़ा। तब से एक सप्ताह में नीति भी दो बार डायलिसिस पर है।
केस-3
प्रतीक अकोतिया 25 साल के हैं। पिता का साया सिर से उठ चुका है। प्रतीक का स्वास्थ्य बचपन से ठीक नहीं रहा। सात साल से किडनी काम नहीं कर रहीं। बिना डायलिसिस के जीवन संभव नहीं है। सप्ताह में दो बार डायलिसिस और कई दवाओं ने उन्हें 2007 के बाद जिंदा रखा है।
केस-4
घर पर सिलाई करके बमुश्किल दस हजार रुपए महीना कमाने वाली 30 वर्षीय गायत्री जोशी को बहुत तेज बुखार आया था। यह 2008 की बात है। बुखार तो ठीक हो गया मगर इलाज के बाद पता चला कि उनकी किडनी खराब हो चुकी हैं। आखिरकार 2011 से उन्हें भी डायलिसिस पर जाना पड़ा।
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ये मार्मिक कहानियां इंदौर की हैं। देश भर में इन कहानियों का कोई अंत नहीं है। 15 साल की उम्र से लेकर 75 साल के वृद्ध तक किडनी फेल होने की त्रासदी से गुजर रहे हैं। इनके लिए दो ही विकल्प हैं। एक, किडनी ट्रांसप्लांट या डायलिसिस। किडनी ट्रांसप्लांट की सुविधा पूरे देश में कुछ ही जगहों पर है। डायलिसिस भी एक बेहद महंगी और लगातार चलने वाली प्रक्रिया है। देश के अलग-अलग शहरों में एक डायलिसिस एक हजार से दो हजार रुपए में होता है। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि परीता, प्रतीक, नीति और गायात्री जैसे मरीजों के परिवारवालों के लिए यह नामुमकिन ही है।


 मध्यप्रदेश में पहली बार इंदौर में ऐसे मरीजों के लिए एक शुरुआत की गई। डॉ. गोकुलदास ने अपने स्वर्गीय पिता की स्मृति मेंं दो करोड़ रुपए की सहयोग राशि से गुलाबचंद परमार्थिक ट्रस्ट खासतौर से इन्हीं लोगों के लिए बनाया। ट्रस्ट ने इस पूंजी से एक किडनी सेंटर की शुरुआत 2 मार्च 2014 को की। गोकुलदास हॉस्पिटल में स्थापित हुए इस सेंटर में पहले ही दिन से डायलिसिस पर निर्भर मरीजों की कतार लग गई। ये वो लोग थे, जिन्हें एक बड़ी राहत इस सेंटर में मिली। इंदौर में औसत एक हजार रुपए में होने वाला डायलिसिस इस किडनी सेंटर में सिर्फ चार सौ रुपए में मुमकिन हुआ। 20 नई मशीनें लगाई गईं। कुशल तकनीशियनों ने अपनी सेवाएं यहां शुरू कीं।
 मैनेजिंग ट्रस्टी डॉ. गोकुलदास ने बताया कि हर दिन 50 डायलिसिस के संकल्प के साथ यह सेवा शुरू की गई थी। मार्च से अगस्त के बीच सेंटर में 6000 डायलिसिस हो चुके हैं। इनमें लगभग एक हजार डायलिसिस बिल्कुल निशुल्क किए गए। देश के किसी भी राज्य में किडनी के मरीजों के लिए ऐसी सुविधा नहीं है। आर्थिक रूप से बेहद मजबूर 7-9 मरीजों के डायलिसिस इस केंद्र पर हर रोज निशुल्क हो रहे हैं। यह खुशी की बात है कि जीवनदान के इस पवित्र कार्य में शहर के कुछ संस्थान और लोग अपने निजी स्तर पर मदद दे रहे हैं। यह सेंटर अस्थाई है और भविष्य में इसे लेकर कुछ बड़े सपने हैं।
 ट्रस्ट की योजना है कि हम एक साल के भीतर ट्रांसप्लांट की सुविधा भी जुटाएंगे। ट्रस्ट के प्रयास इस दिशा में भी हैं कि उसका अपना भवन बने, जो आधुनिक तकनीकी सुविधाओं से लैस हो। यह मध्यप्रदेश में अपने तरह का अकेला किडनी सेंटर होगा। यह समय की जरूरत है, क्योंकि छोटे शहरों में किडनी के मरीजों के लिए जरूरी न तो डायलिसिस की मशीनें हैं, न डॉक्टर हैं।
 डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और दर्द निवारक दवाओं का ज्यादा इस्तेमाल जाने-अनजाने में किडनी पर असर कर रहा है। गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों में एक किडनी के मरीज का होना सबका जीना दूभर करने जैसी घटना है। आप ट्रस्ट के किडनी सेंटर में रजिस्टर्ड सैकड़ों मरीजों से मिलकर इस अथाह पीड़ा को समझ सकते हैं। देश के ज्यादातर किडनी के मरीज अपने इलाज के लिए कुछ गिने-चुने बड़े शहरों के व्यावसायिक अस्पतालों पर निर्भर हैं। उनके लिए यह इलाज एक असंभव विकल्प जैसा है। मगर इंदौर में ट्रस्ट ने देश भर के चिकित्सा जगत के लिए एक उदाहरण पेश किया है। ऐसे सेंटर हर शहर में बनें तो यह लाखों जरूरतमंद मरीजों और उनके परिवारों के लिए सबसे बड़ी राहत होगी।
 नेशनल किडनी फाउंडेशन की एक स्टडी बताती है कि भारत में 80 लाख लोग किडनी से जुड़ी गंभीर बीमारियां झेल रहे हैं। इनमें से सिर्फ 22.5 फीसदी यानी 18 लाख मरीज ही डायलिसिस करा पाते हैं। हर साल दो लाख लोग किडनी फेल होने से मृत्यु के शिकार हो जाते हैं। जबकि हम इन्हें सही समय पर डायलिसिस देकर बचा सकते हैं। हालांकि पूरे देश में 40 हजार डायलिसिस मशीनों की जरूरत है जबकि हैं सिर्फ डेढ़ हजार। किडनी के 20 हजार डॉक्टर देश को चाहिए जबकि सिर्फ एक हजार डॉक्टर ही हैं। आबादी के अनुपात में देश की जरूरतें काफी ज्यादा हैं और इंतजाम बेहद कम। मगर एक शुरुआत कहीं से भी हो सकती है। इंदौर में यह कदम उठा लिया है।







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