Monday 17 November 2014

 कफन से भी कमाई छत्तीसगढ़ के नसबंदी शिविर में मारी गईं महिलाओं पर मीडिया क्या फॉलो-अप कर रहा है? आज एक खबर है-पांच घंटे में कर दी 132 महिलाओं की नसबंदी! डॉ. गीता चौरसिया को इस खबर में बिना उनसे बात किए किसी अपराधी की तरह चित्रित किया गया है। जबकि शिविरों में कम समय में ज्यादा ऑपरेशन न तो लापरवाही है, न अपराध। प्रसिद्ध सर्जन डॉ. ललितमोहन पंत दुनिया में इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं। अपने तीस साल की धुआंधार चिकित्सा सेवाओं में उन्होंने तीन लाख 30 हजार ऑपरेशन किए हैं। एक दिन में 816 सुरक्षित ऑपरेशन का विश्व कीर्तिमान उनके नाम दर्ज है। एक ऑपरेशन में सिर्फ 20 सेकंड!
 दस साल पहले जब मैं नईदुनिया में रिपोर्टिंग करता था, तब लंदन के एक सर्जन डॉ. एडवर्ड सैक्सटेड पंत साहब का नाम सुनकर यहां आए थे। उन्होंने गांवों के बदहाल शिविरों में ऑपरेशन करते हुए डॉ. पंत को खुद जाकर देखा था और हैरत में पड़ गए थे। वे कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि बुनियादी सुविधाओं से महरूम गांवों के अस्थाई टेंटों में कैसे एक डॉक्टर अकेला यह चमत्कार करता है। खुशकिस्मती से डॉ. पंत के दामन में लापरवाही का एक भी दाग नहीं लगा।
 टीवी पर लाइव प्रसारित यह कोई ऐसी दौड़ नहीं थी, जिसमें अव्वल आने के लिए वे पागलों की तरह सालों तक ऐसा करते रहे। उन्होंने ये ऑपरेशन दूरदराज गांवों के उन असुविधाजनक शिविरों में किए, जहां डॉक्टरी की डिग्री लेने वाले ज्यादातर भले मानुष झांकते तक नहीं हैं। जरा सोचिए कि इन शिविरों में सैकड़ों महिलाएं और उनके परिजन जाने कहां-कहां से आते होंगे। उनका घंटों तक इंतजार करते होंगे। मृत्यु तो दूर मामूली लापरवाही का एक भी केस इनमें नहीं है।
 सत्तर फीसदी गांवों की आबादी वाले भारत में सरकारी स्तर पर स्वास्थ्य की बुनियादी संरचना एकदम ध्वस्त है। मध्यप्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं के बर्खास्त संचालक डॉ. योगीराज शर्मा के समय हमने देखा कि किस तरह सैकड़ों करोड़ रुपए नेताओं और अफसरों ने मिलकर खाए। कुछ समय पहले छापे से आहत एक और निलंबित संचालक की धर्मपत्नी ने गुस्से में खुलासा किया कि किस तरह स्वास्थ्य मंत्री महोदय का नियमित हिस्सा उनके पास पहुंचाया जाता रहा था। यही हकीकत है। जिलों के मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी की नियुक्तियों से लेकर उन्हें जारी होने वाले फंड के हर चेक में सबकी बंदरबांट सब जानते हैं।
 जिन बदहाल शिविरों में डॉ. पंत या डॉ. चौरसिया जैसे गिने-चुने डॉक्टर अभागी महिलाओं के ऑपरेशन करने जाते हैं, वहां न साधन होते, न स्टाफ, न दवाएं। जबकि दबाव चौतरफा है। मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य विभाग के एक हिम्मतवर कार्यकर्ता शिवाकांत वाजपेयी ने पांच साल पहले हर राज्य में व्याप्त मेडिकल माफिया के खिलाफ खुलकर मुहिम छेड़ी थी। मगर होता कुछ नहीं है। एक योगीराज की जगह दूसरा ले लेता है। एक मंत्री के बाद दूसरा अपना दाव खेलता है। खाने-कमाने के इस खेल में कोई यह नहीं देखता कि कहां कुछ परहेज भी कर लेना चाहिए। मगर वे कफन से भी कमाई कर सकते हैं।
 छत्तीसगढ़ में जहरीली दवाओं ने नसबंदी के लिए आईं बेकसूर महिलाओं की जानें ली। इसके लिए डॉ. चौरसिया जैसे लोग कैसे गुनहगार हो सकते हैं। पांच घंटे में 132 ऑपरेशन उनका शौक तो कतई नहीं होगा। अगर चार डॉक्टर होते तो पांच घंटे में वे आराम से तीस-तीस ऑपरेशन करते। साधन-सुविधाओं के बगैर एक डॉक्टर के हवाले एक शिविर में इतनी महिलाएं हैं तो इसके लिए रमनसिंह जिम्मेदार हैं, शिवराजसिंह जिम्मेदार हैं, अखिलेश यादव, उमर अब्दुल्ला जिम्मेदार हैं। उनके स्वास्थ्य मंत्री और अफसर अपराधी हैं। जहरीली दवाएं बनती, बटती रहीं तो यही लोग टांगे जाने चाहिए। दुनिया भर में देश की नाक कटाने वाले डॉक्टर नहीं हैं, यही चेहरे हैं।

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