Sunday 14 September 2014

पद्मनाभ स्वामी मंदिर: खजाने की खोज के तीन साल पूरे

तीन साल से करीब ढाई सौ पुलिस बल और साठ कैमरों की सख्त निगरानी में आठ लोगों की टीम हर दिन पांच घंटे काम करती रही। केरल में सबसे कड़ी सुरक्षा प्राप्त पद्मनाभ स्वामी मंदिर में मिले खजाने का ब्यौरा दस्तावेजों पर दर्ज किया गया।

यह काम अब पूरा हो चुका है। छह में से पांच लॉकरों में मिली हर चीज अब रिकॉर्ड पर है। सिर्फ एक ही लॉकर ‘ए’ में पाई गई सर्वाधिक 20 हजार बेशकीमती चीजों को दर्ज करने में दो साल से ज्यादा का वक्त लगा। इनमें सोने के मर्तबानों में चावल के आकार के सोने के दानों से लेकर आभूषण, सिक्के और बर्तन शामिल हैं। इन्हें पुन: पैक करने का काम अगले महीने शुरू होगा। अनुमान है कि इसमें एक साल और लगेगा।



 खजाने को लेकर अदालत की शरण लेने वाले पूर्व आईपीएस अफसर टी.पी. सुंदरराजन की मृत्यु खजाने खुलने के एक महीने के भीतर जुलाई 2011 में ही हो गई थी। उनके बाद सुप्रीम कोर्ट में उनके भतीजे अनंत पद्मनाभ इस केस को लड़ रहे हैं।

वे कहते हैं कि तीन साल पहले तक कोई नहीं जानता था कि मंदिर में क्या है? कम से कम इस केस ने दुनिया को इस छुपी हुई असलियत के बारे में बताया। अब जो कुछ भी सामने आएगा, उसकी सुरक्षा सरकार की जिम्मेदारी होगी। प्रिंस आदित्य वर्मा भी मानते हैं कि पूजा और अनुष्ठान में इस्तेमाल होने वाली भगवान की नियमित उपयोग की सामग्री के अलावा लॉकर ए तो 1930 के बाद कभी खुला ही नहीं। तब से दो पीढिय़ां गुजर गईं।

 प्रिंस आदित्य की मां गौरी लक्ष्मी बाई को खजाना शब्द पर ही आपत्ति है। उनका मानना है कि खुदाइयों में मिले अज्ञात खजानों पर सरकारों का हक लाजमी है मगर यह खजाना नहीं है। यह पद्मनाभ स्वामी की संपत्ति है। हमारे पूर्वजों ने खुद को यहां का राजा नहीं बल्कि पद्मनाभ स्वामी का दास घोषित किया था।

एक सेवक को यह अधिकार होता है कि वह सेवा से मुक्त हो जाए मगर स्वामी और दास का संबंध ऐसा नहीं है। दास हमेशा के लिए है। राजपरिवार ने जो कुछ भी अमूल्य था, वह अपने स्वामी के सुपुर्द किया। यह उनकी संपत्ति है, कहीं खुदाई में मिली लावारिस दौलत नहीं जिसे खजाना कहा जाए।



मंदिर में अगस्त्य मुनि की समाधि!

सबकी निगाहें ‘बी’ लॉकर पर हैं, जिसे खोलने के आदेश नहीं हैं। राजपरिवार की मान्यताओं के अनुसार यह वही जगह है, जहां अगस्त मुनि की समाधि है। यह देश के 52 समाधि मंदिरों में से एक है। प्राचीन तमिल और केरल परंपराओं में अगस्त मुनि का महत्वपूर्ण स्थान रहा है।

त्रावणकोर राजघराना भी इस पक्ष में नहीं है कि सिर्फ सरकार या जनता की जिज्ञासा भर के लिए इसके रहस्य को खोला जाए। राज परिवार के सबसे युवा सदस्य प्रिंस आदित्य वर्मा कहते हैं, इस रहस्य को रहस्य ही रहने देना चाहिए। यह सबकी आस्था का विषय है।

चीन और अरब के सिक्के

  • कुल छह लॉकर हैं। लॉकर ‘ए’ लगभग सवा सौ साल बाद खुला। ‘बी’ को खोलने के आदेश नहीं हैं। ‘सी’ और ‘डी’ हर तीन महीने में खुलते रहे हैं। ‘ई’ और ‘एफ’ में रखा सामान रोज पूजा के दौरान इस्तेमाल होता है।
  • ए लॉकर में 1340 के सिक्के मिले हैं। चीन और अरब के सिक्के भी इनमें शामिल हैं। तब केरल के समुद्री तटों से चीन-अरब तक कारोबार होता था।
  • त्रावणकोर रियासत देश की उन गिनी-चुनी रियासतों में से एक है, जो विदेशी हमलावरों से बिल्कुल अछूती रही। मुस्लिम हमलावर यहां आए नहीं। 31 जुलाई 1741 में पुर्तगालियों की सेना को राजा मार्तण्ड वर्मा ने हराया।
  • इन्हीं राजा मार्तण्ड वर्मा ने 3 जनवरी 1750 को अपना राज्य पद्मनाभ स्वामी को समर्पित किया। राजवंश को उनका दास घोषित किया। इस परंपरा का पालन अब तक जारी है।



No comments:

Post a Comment

कालसर्प योग

ये विवरण आप अपने विवेक से पढ़ें। ये महाराष्ट्र की मेरी यात्राओं के अनुभव हैं। मैं त्रयम्बकेश्वर का जिक्र कर रहा हूं , जो जन्मकुंडली और ज...