Wednesday 24 September 2014

                                                           बाला साहेब ठाकरे के बाद
तीन दिन से मुंबई में हूं। बाला साहेब ठाकरे के देहांत के बाद राज ठाकरे उनकी विरासत के असली हकदार की तरह आक्रामक रहे। सुर्खियों में भी। अब असली मुकाबले के वक्त वे एकदम अकेले हैं। घर और दफ्तर में सन्नाटा है। मातोश्री में उद्धव के आसपास ऐसा जश्न है, जैसे वे मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। उद्धव के बेटे आदित्य ने मिशन-150 तय किया है।
 दृश्य-1
मातोश्री। शिवसेना की शक्तिपीठ। बांद्रा ईस्ट के कलानगर में ठाकरे के आवास पर कड़ा पहरा है। मेन रोड पर बड़े से दरवाजे के सामने मजमा जुटने लगा है। अंदर जाने की इजाजत सिर्फ उन्हें है, जिन्होंने ‘उद्धव साहेब’ से पहले से समय ले रखा है। गांवों से सफेद टोपियां लगाए वारकरी संप्रदाय के सैकड़ों अनुयायी आने लगे। इन्हें फौरन अंदर बुलाया गया।
  दोपहर दो बजे। अंदर से आए एक संदेश ने बाहर खड़े टीवी पत्रकारों में हलचल बढ़ा दी। उद्धव ने बुलाया है। मातोश्री के ठीक बाहर और ज्यादा भीड़ है। उत्साह के उबाल में पुलिस बल जैसे बेअसर है। बंगले के बाहरी हिस्से में एक हॉल है। दीवार पर सपत्नीक बालासाहेब की आदमकद तस्वीर। बगल में उनकी सिंहासननुमा खाली कुर्सी। हॉल वारकरी संप्रदाय के नुमाइंदों से भरा है। उद्धव के आते ही संत ज्ञानेश्वर, तुकाराम, एकनाथ और नामदेव की पंथ परंपरा के ये प्रतिनिधि ऊंचे स्वरों में संस्कृत में मंत्रोच्चारण आरंभ कर देते हैं।
 एक सफेद पगड़ी उद्धव को बांधी जाती है। उद्धव असहज हैं। मुस्कराते हुए अपना चश्मा संभाल रहे हैं। अब बारी-बारी से संत प्रतिनिधियों के मराठी में उपदेश होते हैं। वक्ता हिंदू ह्दय सम्राट का संबोधन सिर्फ बाला साहेब के नाम पर करते है। राज्याभिषेक जैसी इस रस्म में उद्धव बोलने के लिए खड़े हुए, ‘बिना संस्कृति के प्रगति का कोई मूल्य नहीं है। अगर कांग्रेस और एनसीपी के पास सत्ता और पैसा है तो हमारे पास वारकरी का आशीर्वाद है।’ ऊंचे स्वरों में मंत्रोच्चारण के साथ ही पौन घंटे का यह सत्र संपन्न होता है। उद्धव मीडिया से बात नहीं करते। कैमरों को आमंत्रण सिर्फ वारकरियों के आशीर्वाद का साक्षी बनने के लिए था।


बाहर दरवाजे पर भीड़ का भारी दबाव है। सीटों को लेकर भाजपा के साथ चली खींचातानी शिवसैनिकों को रास नहीं आई। वे खुलकर कह रहे हैं, ‘यह रिश्ता बाला साहेब ने जोड़ा था। चंद सीटों के लिए तनातनी नहीं होनी चाहिए थी। उद्धव को उदार होना चाहिए था।’ वहीं उद्धव समर्थक हर्षल प्रधान दलील देते हैं, ‘यह तय करने का अधिकार शिवसेना का है कि वह किसे कितनी सीटें दे। देने वाली शिवसेना है। लेने वाले की भूमिका सहयोगी दलों की है। विवाद कुछ भी नहीं।’
 उद्धव के बड़े बेटे आदित्य का लक्ष्य मिशन-150  है। दिल्ली का मौसम मोदी ने बदला। मुंबई में उद्धव अपने उदय की तैयारी में हैं। इसीलिए सामना में उन्होंने साफ कहा, भाजपा राष्ट्र में राज करे, महाराष्ट्र पर हमें करने दे। दृश्य-2
शिवाजी पार्क। दादर। सफेद रंग से पुता राज ठाकरे का बंगला। पूरी सडक़ पर ही सन्नाटा पसरा है। बंगले के बाहर मौजूद पुलिस वाले बोरियत के शिकार हैं। हावभाव से जाहिर है कि उनका समय बमुश्किल कट रहा है। बाला साहेब के निधन के बाद जमकर सुर्खियों में रहे महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नायक राज ठाकरे इस समय किले के भीतर हैं। उनकी सेना भी कहीं बैरकों में है।
 हर तरफ भीड़भाड़ से भरी मुंबई में इस इकलौती वीरान सडक़ को पारकर मैं माटुंगा वेस्ट स्थित मातोश्री टॉवर की तरफ कूच करता हूं, जहां राज ठाकरे की पार्टी का मुख्यालय है। मुझे लगता है कि शायद वहां मनसे के जोशीले कार्यकर्ताओं का भारी जमावड़ा होगा। लेकिन कार्यालय के सामने ही मुझे पूछना पड़ गया कि मातोश्री टावर कहां है?
 मुस्कराकर एक कारोबारी ने ऊपर इशारा किया। वहां एक भगवा साइन बोर्ड पर लिखा था-महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना। पहली मंजिल पर दफ्तर है। किसी कंपनी या बैंक की तरह एक छोटा सा रिसेप्शन। एक रजिस्टर और दो फोन के साथ राज ठाकरे की तस्वीरों वाला एक कैलेंडर। सामने कुछ सोफे। एक सभागार। कुछ केबिन। रिसेप्शन पर मौजूद सज्जन हर फोन कॉल पर रटारटाया वाक्य बोलते, ‘जय महाराष्ट्र...मनसे।’ मगर लग रहा है कि वह बिल्कुल बेमन से ड्यूटी पर है। सोफों पर छह-सात कार्यकर्ता बैठे हैं। दो अपने स्मार्ट फोन पर फेसबुक पर चेट कर रहे हैं। कुछ बातचीत में व्यस्त हैं। बातचीत का विषय चुनाव नहीं है।
 सचिन मोरे एक केबिन में मिले। उनसे मेरा पहला सवाल मुंबई में मनसे के मायूसी भरे माहौल पर ही है। उन्होंने कहा, ‘राज साहेब अपने पत्ते 25 सितंबर को खोलेंगे। हम एक बड़ा आयोजन करने जा रहे हैं, जहां राज साहेब का जबर्दस्त प्रजेंटेशन होने वाला है। आप भी आइएगा। षण्मुखानंद हॉल में।’
 खूबसूरत आमंत्रण राज ठाकरे की ओर से ही है। किसी और नेता या पदाधिकारी का कहीं नाम नहीं है। वे महाराष्ट्र के विकास पर अपना ब्लू प्रिंट रखेंगे। आमंत्रण के पीछे मनसे का चुनाव चिन्ह छपा है-‘भाप से चलने वाला रेल का इंजन।’ देश की रेल पटरियों पर दशकों से चलन से बाहर। यह नरेंद्र मोदी की बुलेट ट्रेन के आने का समय है, जिसकी शानदार सवारी के लिए उद्धव का टिकट कन्फर्म हो चुका है। राज ठाकरे की पैनी नजर शिवसेना-भाजपा के टूटते गठबंधन की हर ताजा सूचना पर रही। एक मनसे कार्यकर्ता ने कहा कि अगर यह गठबंधन टूटता तो मनसे की रणनीति ही अलग होती। तब शायद स्टीम इंजन पर राज साहेब ही आगे होते।

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