Sunday 25 March 2018

रेडियो मतलब विविध भारती

#VIJAYMANOHARTIWARI
रेडियो दिवस पर विविध भारती पर आज कुछ पुरानी आवाजें सुनीं। जैसे क्रिकेट कमेंट्रेटर सुशील दोशी, जिन्होंने एक अरसे तक टेलीविजन से पहले के दौर में सिर्फ अपनी आवाज और अंदाज से रेडियो पर मैदान की लाइव झलक पेश की। हममें से हरेक की जिंदगी में रेडियो से एक अहम रिश्ता रहा है। हम किसी भी उम्र के हों, वह हमारी यादों का अटूट हिस्सा है। रेडियो ने ही तलत महमूद, मुकेश, लता मंगेशकर, हेमंत, मन्ना डे, किशोरकुमार, शारदा, हेमलता, शैलेंद्रसिंह की आवाजों का रस हमारी जिंदगी में घोला। मदन मोहन, शंकर जयकिशन, जयदेव और खय्याम की सात्विक धुनें सुनते हुए हमने संसार में आंखें खोलीं। अमीन सयानी फिल्म संगीत के प्रभावशाली प्रस्तोता बने। सुबह आठ बजे के समाचारों में कई आवाजें हमारे घरों और दुकानों पर गूंजी हैं।
मुझे याद है स्कूल के दिन। घर में रेडियो था। मां घर के काम करते हुए हवा महल बड़े चाव से सुना करती थीं। गांव-कस्बों में आज भी रंगमंच नहीं हैं। हमने नाटकों को हवा महल पर ही देखा है, जिसमें आवाजें ही जीवंत दृश्य रच देती थीं। उसी से गाने सुनने का चस्का लगा। संगीत सरिता, आठ बजे की न्यूज बुलेटिन, जयमाला, छायागीत और हवा महल की अमर धुनें जेहन में बसी हैं। मुझे किसी ने बताया था कि 1957 में जब विविध भारती शुरू हुई तो इन कार्यक्रमों के नामकरण में प्रसिद्ध कवि पंडित नरेंद्र शर्मा की भूमिका महत्वपूर्ण थी।
हिंदी सेवा से लेकर ऊर्दू सर्विस तक। एक राष्ट्रीय प्रसारण सेवा थी, जो रात में हफ्ते में एक दिन शुभ अवसरों पर शुभकामना संदेश प्रसारित करती थी। कॉलेज के दिनों में अपने दाेस्तों के जन्मदिन वगैरह पर कई पोस्ट कार्ड लिखे, जो बाकायदा रात बारह के बाद के इस प्रसारण में गांव में ही सुने गए। सुनकर बड़ी खुशी होती थी जब लोग कहते थे-आपका नाम रेडियो पर सुना। स्कूल के दिनों में आकाशवाणी इंदौर का प्रसारण दूसरे केंद्रों की तुलना में बहुत स्पष्ट सुनाई देता था। युव वाणी की चर्चाएं सुनकर ऐसा लगता था, जैसे हम सामने बात करता हुआ देख रहे हों। एक बार काली घटा पर कुछ गाने श्रोताओं से मांगे गए थे। फौरन एक पोस्टकार्ड पर दो गाने लिख भेजे, जो बाकायदा सुनाए गए और वो भी नाम सहित। फरमाइशी फिल्मी गीतों में देश के कई नाम लगातार सुने जाते थे। उन्हें पूरा देश नाम से जानता था। रेडियाे का अपने सुनने वालों से यह दोतरफा रिश्ता था।
मैं बचपन में पढ़ने के लिए कुछ साल शिवपुरी में रहा। वहां मेरे कानूनविद मौसाजी अशोक कुमार पांडे स्कूल टीचर हुआ करते थे। वे पढ़ाकू थे और दुनिया भर के अपने सामान्य ज्ञान को समृद्ध रखने के लिए रेडियो पर बीबीसी की समाचार सेवा सुना करते थे। उनसे मुझे भी बीबीसी सुनने का चस्का लग गया। कॉलेज के दिनों में फिजी में हुए सत्ता पलट की बीबीसी पर शानदार कवरेज और वहां की घटनाएं आज तक याद हैं। उन्हीं दिनों हर बुधवार रात आठ बजे बिनाका गीतमाला भी खूब सुनी। सौतन फिल्म का गाना-शायद मेरी शादी का ख्याल दिल में आया है...साल के आखिर में पहली पायदान पर बजा था। आप तो ऐसे न थे फिल्म का गाना-तू इस तरहा से मेरी जिंदगी में शामिल है...भी गीतमाला में लगातार सुनाई दिया था। रंभा हो जैसे उषा उथुप और कल्पना अय्यर के डिस्को गाने भी।
जब मैं बाकायदा पत्रकारिता में आया तब इंदौर के मालवा हाऊस में पहली बार भीतर से स्टुडियो देखे। तब मुझे स्कूल के दिनों के वे पोस्टकार्ड याद आए, जो रेडियो कॉलोनी के इसी पते पर लिखा करते थे। अब एक नया रिश्ता बना। डायरेक्टर बीएन बोस और डॉ. ओम जोशी, संतोष अग्निहोत्री वगैरह यहां मिले। विद्याधर मुले पत्रकारिता विश्वविद्यालय के अकेले स्नातक थे, जो रेडियाे में गए। बोस साहब और जोशी जी ने मुझसे कई फीचर लिखवाए। पर्यावरण, ट्रैफिक, जनसंख्या जैसे विषयों पर लगातार लिखा। रेडियो पर लिखने का अभ्यास बहुत दिलचस्प लगा। एक नया माध्यम, जहां न आप पढ़े जा रहे हैं, न देखे जा रहे हैं। आपके लिखे हुए को सुना जा रहा है। मेरे लिखे फीचर में अक्सर एक आवाज मनीषा जैन की हुआ करती थी, जो इन दिनों मुंबई में हैं। यह नियम था कि एक लेखक तीन महीने बाद ही दूसरा फीचर लिख पाएगा। मेरा लिखा बोस साहब और जोशी जी को बहुत पसंद आता था। ऐसी कॉपी, जिसकी बहुत मरम्मत की जरूरत नहीं होती थी और 26-27 मिनट का कसी हुई हाथ की लिखी स्क्रिप्ट उन्हें मिल जाती थी, वह भी चार दिन की समय सीमा में ऑन डिमांड।
मेरी हेंड राइटिंग बहुत अच्छी हुआ करती थी। ऐसी कि सामने मौजूद चार कॉपियों में से कोई भी सबसे पहले उठाकर पढ़े। बोस साहब ने मेरे लिए एक रास्ता निकाला। उन्हें तकरीबन हर महीने एक फीचर की जरूरत होती थी। उन्होंने कहा कि अपने दो-तीन दोस्तों से बात करूं। उनके नाम से लिखूं। चैक उनके नाम से बनता था। वे कैश मुझे देते। 850 रुपए की वह रकम बेहद कड़की के उन दिनों में फोन वगैरह के बिल जमा करने में काम आती। मनीषा जैन और विद्याधर मुले की आवाजों में अपने लिखे शब्दों को रेडियो पर सुनने का मजा अलग। वे खूब सुने जाते थे। एकाध फीचर को तो आकाशवाणी केंद्राें की प्रतिस्पर्धा में देश भर में सराहना भी मिली थी और उसका पुनर्प्रसारण हुआ था। तब टीवी चैनल नहीं थे और अखबारों में काम करने वाले रचनात्मक रुचियों के लोग रेडियो से जुड़े रहते थे। नईदुनिया में मेरे सीनियर शिवकुमार विवेक तब प्रादेशिक समाचार बुलेटिन पढ़ते थे।
उसी दौर में फोन इन प्रोग्राम हैलो फरमाइश शुरू हुआ। मंगलवार की शाम चार से पांच बजे कमल शर्मा की गहरी और गंभीर आवाज में यह कार्यक्रम एफएम चैनलों की दस्तक के दौर में विविध भारती के लिए वरदान जैसा था। कमल शर्मा देश के कोने-कोने में फैले श्रोताओं के कॉल सुनते। उनका अंदाज इतना आत्मीय था कि श्रोता से सिर्फ गाने की औपचारिक फरमाइश नहीं लेते थे बल्कि परिवार, पेशा, गांव, शहर से लेकर मौसम तक का हाल पूछते थे। वे अपनी जानकारियां भी शेयर करते थे। एक घंटे के इस बांधे रखने वाले प्रोग्राम में गानों के साथ पूरे देश की लाइव अपडेट मिलती थी। कहीं फसलों का मौसम, कहीं शादियों की धूम, कहीं परीक्षाओं का समय। श्रोता खुलकर सुनाते थे। फाेन लाइनें लगातार व्यस्त होने की शिकायतें करते थे। लगने पर खुशी से फूले नहीं समाते थे। कमलजी कई श्रोताओं की आवाज सुनकर ही उनका नाम बता देते थे। मैं तब सिटी रिपोर्टिंग में था और दिन में शहर की फेरी करके चार तक हर हाल में लौट आता था ताकि एक घंटा हैलो फरमाइश सुन सकूं। एक दफा वे इंदौर आए थे। अभय प्रशाल में संगीत का कोई जलसा था। मैं उनका प्रशंसक था। प्रभु जोशी ने मेरी उनसे मुलाकात कराई थी। फिर रेडियो की दूसरी आवाजों ने भी यह प्रोग्राम संभाला और श्रोताओं के साथ मीठे रिश्ते को सबने खूब निभाया।
आज जब निजी एफएम चैनलों की फसलें भी रेडियो पर जोर और जोर से ज्यादा शोर से लहलहा रही हैं। यह युवाओं के जोश से भरी दुनिया है, जिसमें सिनेमा जगत से जुड़ी फिजूल जानकारियां, नई फिल्मों अौर कलाकारों के बेमतलब किस्सों का भयावह ओवरडोज है। बाढ़ सी आई हुई है। एफएम में भाषा के संस्कार की वह गंभीरता गायब रही, जो विविध भारती की सात्विक पहचान है। यहां है नई पीढ़ी को संबोधित हिंदी-अंग्रेजी की खिचड़ी। विविध भारती के अपने 50-60 साल के संग्रह में गीत-संगीत का नायाब खजाना है, जिसका कोई मुकाबला नहीं हो सकता। लेकिन एक के बाद एक कई एफएम चैनल भी रेडियो के संसार का हिस्सा बने ही। हालांकि दो दशक की उनकी यात्रा में यादगार चीजें बहुत ही कम होंगी। हर शहर के अपने चैनल हैं।
इंदौर में अभिजीत और एकता शर्मा अलग-अलग चैनलों में थे, जिनके कुछ शो याद हैं। भोपाल में अनादि और आशी की आवाजें जानी-पहचानी गईं। आरजे की यह दुनिया विविध भारती के आगे कुछ नश्वर भी है। कब कौन सी आवाज गुम जाए और नई आवाज आ जाए, पता ही न चले। मगर विविध भारती में ममता सिंह, कमल शर्मा, यूनुस खान, मनीषा जैन की आवाजें बरसों से सुनी जा रही हैं। उन्हें सुनते हुए लगता है कि आवाजें हमें जिस संसार से जोड़ती हैं, ये उसी परिवार के हमारे हिस्से हैं।
हमारे परिवार, पड़ौसी, दोस्त, रिश्तेदार, सहकर्मी मिलकर एक संसार रचते हैं। इस संसार में आवाजें भी एक रिश्ता गढ़ती हैं। रेडियो ने यही रिश्ता बनाया। टीवी भी कुछ बिगाड़ नहीं पाया। मेरे लिए रेडियाे का मतलब विविध भारती है और वे सब नाम, जिनकी आवाजें हम सुनते आ रहे हैं। इनसे शायद हम कभी न मिलें, लेकिन सब अपने ही दोस्त लगते हैं। अपने ही परिवार के।
शुक्रिया रेडियो, शुक्रिया विविध भारती।
#VIVIDHBHARTI #RADIO
13 फरवरी 2018
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