Sunday 25 March 2018

मेरे देश के दो बड़े स्पीडब्रेकर


दो बेडरूम के फ्लैट में चार सदस्य बढ़कर चालीस हो जाएं तो उस घर की दशा क्या होगी? अकेली टेक्नोलॉजी के बूते पर ऐसे घर की कितनी समस्याओं के हल हो सकेंगे जबकि घर में लोग लगातार बढ़ ही रहे हों। भारत की स्थिति कुछ ऐसी ही है। सुनने में यह बात कड़वी लगे मगर हम सवा सौ कराेड़ के गर्व नहीं, शर्म के विषय हैं। नंदन नीलेकणी, नारायणमूर्ति, पित्रोदा जैसी हस्तियों को आबादी और जातिगत आरक्षण जैसे सबसे विकट स्पीडब्रेकर पर खुलकर बोलने की जरूरत है। राजनीतिक दलों की औकात नहीं...
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#VIJAYMANOHARTIWARI
इन्फोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणी भोपाल आए। उनका भाषण भारत की अर्थव्यवस्था के मजबूत भविष्य की संभावनाओं से भरा हुआ था। सबसे पहले उन्होंने क्या कहा, यह देखें। वे बाेले-इस दौर में डेटा ही इकाेनॉमी का ऑयल है। भारत आर्थिक रूप से समृद्ध होने के पहले डेटा में समृद्ध होने जा रहा है। जबकि पश्चिम के देशों में आर्थिक समृद्धि पहले आई, डेटा बाद में। भारत की कारोबारी समृद्धि में डेटा अहम भूमिका निभाने वाला है। कैशलेस अर्थव्यवस्था और जीएसटी स्थिर होने पर छोटे कारोबारों में बड़े बदलाव दिखाई देंगे। डेटा का इस्तेमाल शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए होगा। तब भारत एक चमकदार भविष्य में कदम रखेगा। बड़ी आबादी हमारी एक चुनौती है। कम समय में समस्याओं के टिकाऊ हल चाहिए। हम टेक्नालॉजी की मदद से यह हासिल कर सकते हैं।
रोबोट टेक्नोलॉजी पर : साल दर साल जॉब के नेचर बदल रहे हैं। पुरानी तरीके की नौकरियां खत्म हो रही हैं। नए तरह के अवसर पैदा हो रहे हैं। एक समय चीन मैन्युफैक्चर में सुपर पावर बन गया। आज यह सेक्टर ऑटोमेशन में जा रहा है। जर्मन कंपनी एडिडास में कर्मचारी कम बचे हैं, रोबोट सारा काम संभाल रहे हैं। दुनिया के इन बदलावों के मद्देनजर भारत के सामने चुनौती है कि वह अपने यहां किस तरह के जॉब पैदा करे। अब दस तरह के स्किल आपके पास होना ही चाहिए। लाइफ लांग लर्निंग हमें अपनानी होगी। हफ्ते में 15 मिनट कुछ नया सीखने के लिए दें। इस लिहाज से हमारे सामने तीन चुनौतियां हैं-हरेक भारतीय कैसे शिक्षित हो, कैसे इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा हो और लाइफ लांग लर्निंग।
शिक्षित होने की शर्त: नीलेकणी के 18 मिनट के भाषण का यह सबसे जरूरी हिस्सा था। जैसे इश्तहारों में शर्तेँ लागू सबसे नीचे स्टार लगाकर टिकाया जाता है। उन्होंने कहा- समृद्ध इकोनॉमी वाले जापान, चीन और कोरिया जैसे देश शिक्षित हैं। इसलिए ग्रोथ हासिल की। भारत में सबको शिक्षित किए बिना हम यह लक्ष्य हासिल नहीं कर सकते। सब बच्चे स्कूल जाएं, लिखना-पढ़ना सीखें। उन्हें स्मार्ट फोन, कम्प्यूटर और टीवी जैसे डिवाइस इस्तेमाल की आदत हो। भारत में 350 मिलियन लोगों के पास स्मार्ट फोन आ चुके हैं। भारत एक बड़ा देश है। हमें हर तरह के तकनीकी प्लेटफॉर्म बनाने होंगे। शिक्षा में सुधार के लिए डिजीटल कनेक्टिविटी के साथ कोर्स के विश्वस्तरीय आॅनलाइन कंटेंट जरूरी हैं। यह वैश्विक साक्षरता को सुधारने में मददगार होंगे।
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मेरा मत:
#NandanNilekani #NarayanMurthi #SamPitroda #SundarPichai जैसी हस्तियां भारत की सबसे बड़ी समस्याओं पर खुलकर बात कर सकती हैं। वे बेतहाशा बढ़ती आबादी को कंट्रोल करने के लिए सरकारों को प्रेरित करें और बिना किसी लागलपेट के जातिगत आधार पर पत्थर की लकीर बन चुके आरक्षण की भी सत्य समीक्षा करें। मेरा स्पष्ट मत है कि ये दो मसले भारत की आर्थिक तरक्की से गहरा ताल्लुक रखते हैं।
हम बड़े गर्व से कहते हैं कि हम सवा सौ करोड़ के मुल्क हैं। लगातार तेजी से बढ़ रही इस भीड़ ने इन्फ्रास्ट्रक्चर का कचूमर निकाला हुआ है। रेलवे प्लेटफार्म, ट्रेनें, बस अड्‌डे, बसें, सड़कें, स्कूल, अस्पताल लबालब भरे हैं। शहरों के पास कोई मास्टर प्लान नहीं हैं। वे बस फैलते जा रहे हैं। खेती का रकबा घट रहा है। नदियां बरबाद हो चुकी हैं। हरियाली दम तोड़ रही है। तीन टुकड़े होने के बाद बचा-खुचा यह देश अधिकतम साठ-सत्तर करोड़ की जनसंख्या सीमा में ही होना चाहिए था। आज हम दो गुना बोझ ढो रहे हैं। हम सवा सौ करोड़ के गर्व नहीं, शर्म हैं!! हर साल डेढ़ लाख लोग सड़क हादसों में ही मर जाते हैं। यह एक छोटे शहर की आबादी के बराबर है। कीड़ों-मकोड़ों की तरह बढ़ती, जीती-मरती आबादी में सिर ऊंचा करने की भला क्या बात है?
अकेले संजय गांधी आजाद भारत में एकमात्र ऐसे नेता हुए, जिन्होंने भारत के सीमित संसाधनों पर तेजी से बढ़ रहे आबादी के बोझ को सबसे पहले सत्तर के दशक की शुरुआत में ही महसूस किया और सरकारी नीतियों में परिवार नियोजन के टारगेट जोड़े। जैसा कि हमेशा होता है भारत में कोई भी अच्छी शुरुआत जल्दी ही पचड़ों में पड़कर अपनी गति को प्राप्त हो जाती है। निचले स्तर पर जनसंख्या को काबू में लाने का क्रियान्वयन सरकारी मशीनरी ने जिस फूहड़ ढंग से किया, आज चालीस साल बाद कोई भी ताकतवर राजनीतिक दल खुलकर इस मसले पर बात न करने में ही अपनी भलाई समझता है।
दूसरा, #reservation जातिगत आरक्षण। देश में हर कोई जानता है कि अब यह गंदी वोट बैंक की राजनीति का एक बड़ा मोहरा है। जातियों काे खुश करने का सबसे सस्ता और घातक साधन। इसने भारत की प्रतिभा को कुंठित किया है और सरकारी सेक्टर में नाकाबिलों की एक ऐसी फौज खड़ी कर दी है, जिससे देश को क्या मिला, इसकी समीक्षा होनी चाहिए। मैं आरक्षण के नाम पर अनुकंपा नियुक्तियों के खिलाफ और हर तबके के आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को अाधुनिक मुफ्त शिक्षा का हिमायती हूं। वे किसी भी जाति के हों। उन्हें देश की हर प्रतियोगी परीक्षा में दूसरे सबल बच्चों के बराबर खड़ा किया जाना चाहिए। लेकिन किसी भी सेवा में चयन का एकमात्र आधार योग्यता ही होना चाहिए। मेरिट और सिर्फ मेरिट। आरक्षण ने बेहिसाब अनुकंपा नियुक्तियां दीं हैं और पदों पर आए ऐसे लोग अपने ही समाज से कटकर नव सवर्ण बन गए। उनके ऊंचे पदों पर जाने से उनकी बिरादरी का कौड़ी का भला नहीं हुआ। वे अपने गांव के ही अपनी जाति के लोगों को बगल में नहीं बिठाते। हिकारत से देखते हैं। उनकी तीसरी पीढ़ी आरक्षण की मलाई मार रही है।
नीलेकणी अगर भारत को सचमुच तेजी से गतिशील अर्थव्यवस्था के भविष्य के रूप मेें देखते हैं तो टेक्नोलॉजी जितनी जरूरी है, उतने ही सिस्टम के ये सबसे बड़े स्पीडब्रेकर भी उनके ध्यान में हाेने चाहिए, जिन पर सबने मौन व्रत धारण किया हुआ है। इन मसलों पर खुलकर बोलने का समय है। उनकी आवाज में असर है, जो ऊंचाई पर बैठे उन नीति निर्धारकों के लिए भी ठीक से सुनाई देती है, जो ऊंचे पदों पर जाकर ऊंचा सुनने के आदी हैं। जमीनी सच से अनजान, जहां असली भारत बिलबिलाती भीड़ की शक्ल ले रहा है और प्रतिभाओं को हमने कुंठित होकर मरने या टिके रहने के लिए उनके चारों तरफ अंतहीन संघर्षपूर्ण हालात पैदा कर रखे हैं!
#vijaymanohartiwari
2 दिसंबर 2017
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