#Vijaymanohartiwari
मध्यप्रदेश से उपजी यह एक दिलचस्प स्टोरी है। इसमें प्यार के ड्रामे भी हैं। सेक्स का तड़का है। बेहिसाब पैसा है। सत्ता का नशा है। महत्वाकांक्षा का बुखार है। इश्क है। तड़प है। वादे हैं। खुशनुमा जिंदगी हर तरह के साजो-सामान से सजी है। सुबह हसीन हैं। दोपहरें अलसाई हैं। शामें दिलकश हैं। सपनों से भरी रातें रंगीन हैं। मगर दोनों काे ही यह अहसास नहीं है कि बहुत जल्दी ही रिश्तों की ऊर्जा से भरी गरमाहट ज्वालामुखी की शक्ल लेनी वाली है। अब सरेआम हो चुकी इस कहानी में थाने हैं, अदालत है, फरारी है, जेल है, जांचें हैं, ऑडियो हैं, वीडियो हैं और सबसे ऊपर सियासत है।
कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे सत्यदेव कटारे के चिरंजीव हेमंत कटारे 30 से कम उम्र के हैं। पत्रकारिता की पढ़ाई करने भोपाल आई प्रिंशु 23 की। यह सपनों से भरे युवा भारत के दो शहरी सिरे हैं, जिनकी जड़ें दूरदराज गांवों में हैं। एक सिरे पर पैदाइशी अमीर नौजवान है, जिसने अपने पिता की राजनीतिक सत्ता का असर आंख खोलते ही देखा और महसूस किया है। उसे कुछ भी हासिल करने के लिए पसीने की एक बूंद नहीं बहानी पड़ी। पिता की नेक कमाई ही रही होगी कि कांग्रेस ने उसे उनकी जगह रखा। आज जब मध्यप्रदेश में कांग्रेस पार्टी 14 साल से ठंडी अपनी राख में से खुद को खड़ा करने की कोशिश में है, ऐसे बेहद मुश्किल मोड़ पर हेमंत से ऐसी परफॉर्मेंस की उम्मीद किसे थी? हेमंत को अभी अपनी आंखों से दुनिया देखनी थी। मगर बाप की कमाई के नशे में चूर आंखें बिना परिश्रम और प्रयास के मिली सत्ता की पहली ही झलक में ही चौंधिया गईं। प्रिंशु का नाम सामने आ गया। वे न होतीं तो कोई और होता। हो सकता है हो भी और फिलहाल कहीं शुक्र मना रहा हो। पेरिस की शामों की रोशनी रंग-बिरंगी होती है। खूबसूरत परछाइयां किसी भी नाम की हो सकती हैं।
हेमंत जब अपने पिता के देहांत के बाद कांग्रेस की राजनीति में उनकी जगह आ रहे होंगे, जब उन्हें पहला टिकट मिला होगा, जब वे पहली बार अपने वोटरों के बीच गए होंगे और जब जीतकर विधायक के रूप में चिर-परिचित राजधानी में कदम रख रहे होंगे तब ऊंचाइयों पर जाते अपने करिअर के उन सबसे शानदार दिनों में यह रिश्ता भी परवान पर रहा होगा। उनके बेहद करीबी दोस्त ही जानते होंगे कि राजकुमार किसी खूबसूरत कन्या पर आशिक हैं। जिंदगी हर तरफ से उन पर एकदम मेहरबान थी। उम्र, मोहब्बत, दौलत, शौहरत, ताकत।
हरियाणा के गृहमंत्री रहे गोपाल कांडा ने जब गीतिका की खुदकुशी के पहले वाली रात महंगी शराब के आखिरी पैग की लज्जतदार चुस्की ली होगी, तब वे ठीक ऐसे ही नाजुक वक्त में थे। लेकिन अगली सुबह खुदकुशी की एक खबर ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा। वे उम्र के उस पड़ाव पर थे, जब जूते की दुकान से शुरू हुई उनकी कामयाबी की कहानियां पुरानी हो चुकी थीं और सपनों को सिर्फ रंगीन होने की ही इजाजत थी। अकूत दौलत के दिखावे कांडा पर सबसे भारी पड़ गए। पलक झपकते ही वे राजनीति में हाशिए पर आ गए। सत्ता रेत का महल साबित हुई। नवाबी शौक उन्हें जेल तक ले गया। रातों-रात आई बेहिसाब दौलत और ताकत दो कौड़ी की साबित हुई। हम एक दीपिका का नाम एक खुदकुशी की वजह से जान पाए। उनकी जिंदगी में आईं दूसरी कई दीपिकाएं खैर मना रही होंगी।
अगर हेमंत पहली बार के नौसिखिया विधायक न होेते और उत्तरप्रदेश के बाहुबली मंत्री अमरमणि त्रिपाठी की तरह ही होते तो प्रिंशु जेल से जमानत पर बाहर नहीं आ रही होती, उत्तरप्रदेश के ही मऊ के पास अपने पुश्तैनी गांव के घर में उसकी तस्वीर पर फूलों की एक माला पड़ी होती। फूल भी अब तक सूख गए होते। अगर वे ऑडियो सही हैं तो भोपाल के माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में पीजी की यह धृष्ट कन्या कुछ ज्यादा ही आत्मविश्वास से भरी थी। सब तरह के रिश्तों की एक शानदार पारी खेलने के बाद एक नौजवान विधायक 25 लाख रुपए पर मामला सैटल करने की बात जुआरी सौदागर की तरह कर रहा है और कन्या 28 पर ही किसी कुशल कारोबारी की तरह अडिग है, क्योंकि उसे फिक्र है कि 25 लाख तो 25 दिनों में ही खर्च हो जाएंगे।
इस बेफिक्र बातचीत के दौरान विधायक महोदय को अहसास है कि यह खूबसूरत मगर वाहियात लड़की उसका खेल खराब सकती है। यह तो तय है कि नया विधायक अनाड़ी आशिक है, जो एक दिलफरेब हसीना के हिस्से में आ गया है। कटारे को यह भी शक है कि सत्तादल की कोई तीसरी शक्ति इनके रिश्ते को एक खतरनाक मोड़ पर धकेल रही है और उनके पास खोने को काफी कुछ है। वह अपनी ताजा शौहरत के कबाड़े की आशंका में डरा हुआ है।
प्रिंशु पीजी के लिए जब भोपाल में पहली दफा आईं होंगी तो शायद ही इस तरह संसार के सामने आने का ख्वाब उन्होंने कभी देखा होगा। महात्वाकांक्षा मीडिया में हैसियत बनाने की ही रही होगी। एक ऐसी दुनिया, जहां आप चेहरे से या नाम से जाने जाते हैं। या कम से कम ऐसा मुगालता तो रहता ही है। अनिश्चितता से भरी वह दुनिया, जहां ऊंची पसंद वाले ऊंचे लोग रहते हैं और उन तक पहुंच बहुत आसान होती है। लेकिन कई बार हम चाहते कुछ हैं और हो कुछ और ही जाता है। प्रिंशु की जिंदगी में विक्रमजीत नाम का एक किरदार न जाने कहां से आ जाता है। न वह मऊ का है, न लखनऊ का, न पत्रकारिता विश्वविद्यालय से उसका कोई लेना-देना। बिल्कुल अलग ही पेशे का। एक कार कंपनी का कारिंदा। जब ऐसी कहानियां हवाओं का हिस्सा बनती हैं तो कई मनमाने कतरे भी कानों के आसपास तैरने लगते हैं। सोशल मीडिया के बेलगाम घोड़ों को कोई कहीं जाने से नहीं रोक सकता।
वह विक्रमजीत के साथ देखी जाने लगती है। विक्रमजीत के सियासी आका के बारे में अफवाहें चल पड़ती हैं। आका के ऐसे कई गुर्गे हैं। अगर प्रिंशु को अपने रिश्तों की कीमत ही वसूलनी थी तो इस कहानी में इतनी उथलपुथल की गुंजाइश नहीं थी। मामला भोपाल की अरेरा कॉलाेनी के चमचमाते जूना जिम के आरामदेह सोफे पर किसी सर्द रात एक यादगार सेशन के बाद ही किसी शांतिपूर्ण सुलह तक चला गया होता। प्रिंशु के लिए 20-25 लाख रुपए की रकम भोपाल जैसे शहर में जीने लायक शुरुआत करने के लिए मामूली सी मदद साबित होती या वह डिग्री पूरी करके किसी और शहर में अपना करिअर बनाती। वहां राजनीति की चकाचौंध में अपने लिए कोई नए किरदार ढूंढती। कोई कभी नहीं जान पाता कि हेमंत कटारे से उसके क्या रिश्ते थे?
पुरानी फिल्मों के रंजीत की तरह परदे पर विक्रमजीत हेमंत-प्रिंशु की घटनाओं से भरी इस कहानी में आते हैं। क्या उन्होंने कन्या को मोहरा बनाकर कांग्रेस के हेमंत को ठिकाने लगाने की सोची। मगर इससे विक्रम को भी क्या फायदा होना था? ज्यादा से ज्यादा सौदे में वह अपने हिस्से का टुकड़ा लेकर शांतिपूर्वक रह सकता था। तो क्या इस पूरे फैलारे के पीछे कोई और है? एक ऑडियो में कन्या की आवाज में तीन-चार नाम सुनाई दे रहे हैं। क्या वह कोई और चौथा या पांचवा भी है?
वीडियो और ऑडियो को देखें-सुनें तो हैरत होती है कि कोई लड़की अपने पहले ही रिश्ते में इतनी हुनरमंद हो सकती है। बाहर से पढ़ने आए बच्चों की जिंदगी में झांकने के मौके कम ही आते हैं। क्या इनके परिवारवालों को अहसास है कि ये किस खोखली जमीन पर खड़े हैं? शहरों में आकर ये किन सपनों का पीछा कर रहे हैं?
नेताओं की जिंदगी के तो कहने ही क्या हैं? वे तो सत्ता के सबसे बड़े सपने के लिए ही जीते हैं। किसी भी कीमत पर वही मकसद है, वही नशा है। मगर आप नए खिलाड़ी हैं ताे कभी-कभी उथले पानी में भी डूब सकते हैं। यह एक नौसिखिए नेता की ऐसी ही अक्षम्य और आत्मघाती चूक की कहानी है, जिसकी कई परतें खुलना बाकी हैं। ब्लैकमेलिंग, ज्यादती और अपहरण के तीन केस शुरुआती परतें भर हैं। अब कोई अटेर जाकर उन वोटरों से बात करे, जिन्होंने दिवंगत सत्यदेव की जमानत पर हेमंत पर भरोसा किया था। जख्मी हालत में सही मरहम की जरूरत किसे नहीं होती? हार मुंदी चोट की तरह देर तक दर्द देती है। पुलिस और क्राइम ब्रांच की औकात इस कहानी में सियासी मोहरों से ज्यादा नहीं है। आकाओं को बखूबी पता है कि एक बार सुराग हाथ लगने के बाद कब क्या करना है। उनके लिए यह रोमांच से भरा खेल है।
प्रिंशु सरला मिश्रा, मधुमिता शुक्ला और गीतिका से ज्यादा उम्र लिखवाकर लाई थीं। कई साल साल कोमा में रहते हुए भी सत्यदेव कटारे इतनी पीड़ा में कभी नहीं रहे होंगे। इस समय जहां कहीं वे सूक्ष्म रूप में होंगे तो उससे कहीं ज्यादा तकलीफ महसूस कर रहे होंगे। हेमंत कटारे भिंड में उनकी सियासत के उत्तराधिकारी तो बन गए मगर एक काबिल बेटे नहीं बन सके। इस नाकाबिलियत ने पहले ही चुनाव में जीत के फौरन बाद उन्हें गर्त में धकेल दिया है। इससे उबरना आसान नहीं होगा। घात-प्रतिघात से भरी सियासत इतनी बेरहम है कि कोई भी चीज मोहरा बनाई जा सकती है। इस खेल में पहली मात उनके हिस्से में आ चुकी है।
#hemantkatare
6 फरवरी 2018
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