पांच साल तक लगातार भारत घूमने के बाद 2015 की शुरुआत में स्थिर हुआ। ढाई साल बाद अचानक दीपावली कवरेज के लिए श्रीलंका जाने का योग बना। कारण था दीपावली पर वहां से सीता मंदिर की एक जगमगाती तस्वीर और कहानी। इस सफर में पहले फोटो एडिटर ओपी सोनी साथ जाने वाले थे लेकिन पासपोर्ट नहीं होने से वे पिछड़ गए और उदयपुर के ताराचंद गवारिया भारी बहुमत से नेता चुने गए। वे पासपोर्ट सहित दिल्ली में ही मौजूद थे। दिल्ली से सवा तीन घंटे की उड़ान से शाम सात बजे के पहले हम कोलंबो के भंडारनायके एयरपोर्ट पर उतरे। यहां से 175 किलोमीटर
दूर है शानदार पहाड़ी पर्यटन केंद्र नुवारा एलिया, जहां हमेें जाना था।
एयरपोर्ट पर करेंसी एक्सचेंज और टैक्सी करने में एक घंटा लगा होगा। आठ बजे के पहले हम निकले। रोहन नाम का स्थानीय ड्राइवर हमारा सारथी था। करीब सौ किलोमीटर का सफर सीधी सड़क का था। आगे के सत्तर किलोमीटर पहाड़ी रास्ते पर थे। जब नुवारा एलिया पहुंचे तो वहां ठंड और बारिश थी। हम तटवर्ती इलाकों की उमस के मौसम के हिसाब से सादे कपड़े ले गए थे। वहां थियागो से लगातार फोन पर बात होती रही थी। वे श्रीलंका के शिक्षा राज्यमंत्री एस. राधाकृष्णन के प्रेस सेक्रेटरी हैं। उन्होंने होटल की बजाए हमारे रुकने का इंतजाम अंग्रेजों की बनवाई एक कोठी में किया हुआ था। यह 1876 में बने हिल्स क्लब के पास थी, जहां एशिया के कुछ खास गोल्फ कोर्ट में से एक अब तक मौजूद था। अंग्रेज 6200 फुट ऊंचाई की सर्द वादियों में यहां चाय के बागान लगाने आए थे।
1818 में वे तमिलानाडु से भी कुछ लोगों को लाए थे। थियागू बताते हैं कि तमिलनाडू से वे श्रीलंका के मन्नार किनारे से मातले होकर यहां तक लाए गए थे। मैंने एक दीपावली रामेश्वरम् से कवर की थी। तब धनुषकोडि जाने का मौका मिला था। यह रेतीला टापू रामेश्वरम से श्रीलंका की तरफ फैला हुआ है। तब मुरुगेशन नाम के स्थानीय ड्राइवर ने मुझे बताया था कि श्रीलंका के तट की यहां से दूरी सिर्फ 20 किलोमीटर है। यह वही जगह है जहां से राम ने युद्ध के लिए लंका प्रस्थान किया था। इसके लिए सेतु निर्माण धनुषकोडि के इसी कोने से किया गया था। मुरुगेशन पहले किसी शिपिंग कंपनी में काम करता था। उसने बताया था कि समुद्र के भीतर वे संरचनाएं अब तक सुरक्षित हैं, जो किसी प्राचीन सेतु के अस्तित्व का संकेत देती हैं। मुझे लगता है कि उस समय श्रीलंका और भारत के बीच की दूरी भी कम ही रही होगी। समुद्री जलस्तर बढ़ने से यह दूरी अब बीस किलोमीटर है। अंग्रेजों द्वारा काम के लिए लाग गए तमिलों के वंशज आज यहां बहुत बड़ी तादाद में और राजनीति में असरदार हैं। नुवारा एलिया की 15 लाख आबादी में से 10 लाख तमिल हैं। संसद की आठ सीटों में से पांच पर तमिल सांसद हैं। राधाकृष्णन इन्हीं में से एक हैं जो वर्तमान सरकार में शिक्षा राज्यमंत्री हैं। वे उस मंदिर ट्रस्ट के चेयरमैन भी हैं, जो सीता अम्मन टेंपल की देखरेख करता है। वे अगले दिन हमें ट्रस्ट के ऑफिस में मिले और मंदिर में रात की फोटोग्राफी की मंजूरी के साथ तैयारियों में भी हमारी मदद की। सीता मंदिर नुवारा एलिया शहर से करीब पांच किलोमीटर के फासले पर है।
थियागू के साथ हम सुबह करीब 11 बजे सीता मंदिर पहुंचे। श्रीलंका के इस दूरदराज कोने में हिंदी कोई नहीं
जानता मगर हनुमान चालीसा की गूंज अयोध्या और चित्रकूट की अनुभूति करा रही थी। भारत में गुरुवार को दिवाली थी, यहां
बुधवार को ही। दक्षिण भारतीय शैली के सीता अम्मन टेंपल में विशेष पूजन की
तैयारियां थीं। बारिश और ठंड थी। हिंदी और तमिल में राम, सीता और हनुमान की स्तुतियां कड़कड़ाती
ठंडी हवाओं में अमृत घोल रही थी। हम यह सुनकर ही यहां आए कि राम के वनवास के दिनों
में रावण ने सीता का हरण कर यहीं कहीं उन्हें रखा था। सामने गगनचुंबी पहाड़ियों पर कहीं
अशोक वाटिका थी। यह एकमात्र मंदिर आज लंका
में सीता की उपस्थिति का प्रतीक है। ठंडे मौसम ने यहां आने का आनंद दो गुना कर दिया। ऐसी जगह कहां बार-बार आना होता। इसलिए हर पल को कैमरे में उतारना जरूरी है।
हमने बारिश के रुकते और सूरज के बादलों से झांकते ही दिन की चमकती रोशनी में मंदिर
की छवियां लीं।
पुरोहित रामानंद गुरुक्कल ने राम, लक्ष्मण,सीता और हनुमान की प्राचीन प्रतिमाएं पांच
हजार साल पुरानी बताईं। हम उनकी विशेष आरती के साक्षी बने। गुजरात और दिल्ली के कई
श्रद्धालु भी आज यहां मिले। हम नुवारा एलिया से रात को फिर मंदिर लौटे। इस समय बारिश
रुक-रुककर हो रही थी। बाहर हवा काफी तेज थी। दिन के समय घनी हरियाली की पृष्ठभूमि में
देखे मंदिर का रूप इस समय एकदम अलग नजर आया। शाम ढलते ही इसकी अलग छटा नजर आई। हरियाली अंधेरे
में छिप गई है और उस पहाड़ी सोते की आवाज लगातार गूंज रही है, जिसके बारे में कहते हैं
कि सीता अशोक वाटिका से उतरकर यहीं स्नान के लिए आती थीं। पानी रुका तो हमने रात की
रोशनी में सोने से दमकते मंदिर की यादगार तस्वीरें हर कोने से लीं। स्थानीय श्रद्धालु
शाम सात के बाद यदाकदा ही आते हैं इसलिए इस वक्त पूरी तरह शांति थी। बेहतर फोटो के लिए रात की जगमग में
हमने दीयों की खास रोशनी की।
युग बीत गए। उधर भारत की चेतना में राम बसे हैं तो
इधर श्रीलंका की स्मृतियों में सीता भी सुरक्षित हैं। नुवारा एलिया के घुमावदार ऊंचे
पहाड़ों की सघन हरियाली में ही कहीं अशोक वाटिका थी। दो दिशाओं में आधे आसमान तक ऊंचे
ऐसे ही एक पहाड़ी कोने में सीता का मंिदर है। इस इलाके में कई मंदिर हैं मगर वानर सिर्फ
सीता मंदिर में ही नजर आए। मंदिर के प्रवेश द्वार से लेकर अंदर तक हनुमान यहां वीर
योद्धा के रक्षक रूप में अनेक प्रतिमाओं में हैं। मंदिर के पीछे एक चट्टान पर हनुमान
के चरण चिन्ह भी हैं। एक खास किस्म का अशोक वृक्ष सीता निवास के इसी दायरे में मिलता
है, जिसमें अप्रैल के महीने में लाल रंग के फूल आते हैं। गॉल नाम के क्षेत्र में ऐसी
जड़ी-बूटियों की भरमार है, जो पूरे श्रीलंका में कहीं नहीं होतीं। कथा है कि हनुमान
संजीवनी बूटी के लिए जिस पहाड़ को उठा लाए थे, उसमें आईं वनस्पतियों का ही यह विस्तार
हैं। सिंहली आयुर्वेद में यह औषधियां आज भी वरदान मानी जाती हैं। देवुरुम वेला नाम
की जगह के बारे में प्रचलित है कि यहीं सीता की अग्नि परीक्षा हुई थी। यहां की मिट्टी
आश्चर्यजनक रूप से काली राख की परत जैसी है, जबकि देश भर में भूरी और हल्के लाल रंग
की मिट्टी पाई जाती है। श्रीलंका के शिक्षा राज्यमंत्री वी. राधाकृष्णन मंदिर ट्रस्ट
के चेयरमैन भी हैं। भास्कर से चर्चा में उन्होंने बताया-रावण की लंका का दहन यहीं हुआ।
मिट्टी में मोटी काली परत स्थानीय लोकमान्यता में इसी दहन कथा से जुड़ती है। सीता की
स्मृतियों से जुड़ा यह स्थान अब एक पवित्र तीर्थ बन चुका है। आस्था की दृष्टि से हमारे
लिए यह स्थान उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना भारत में अयोध्या।
सीता अशोक वाटिका में कितने समय रहीं: वनवास के 14 सालों में
राम, लक्ष्मण और सीता ने कहां-कितना समय गुजारा और सीता कितने दिन लंका में रहीं? रामेश्वर
में रह चुके और इन दिनों पंचवटी में मौजूद पंडित विष्णु शास्त्री कहते हैं कि भगवान
ने वनवास के 12 वर्ष चित्रकूट में बिताए थे। लगभग एक वर्ष पंचवटी में रहे। यहीं से
रावण ने सीता का हरण किया। यहीं से राम ने किष्किंधा की ओर प्रस्थान किया, जहां हनुमान
और सुग्रीव से उनकी मित्रता हुई। बालि वध हुआ। रामेश्वर में जटायु के भाई संपाति ने
ही सीता की तलाश में निकले वानरों को सीता का पता बताया था। फिर राम का रामेश्वरम आगमन,
सेतु निर्माण और युद्ध के लिए लंका प्रस्थान के प्रसंग हैं। ऐसा अनुमान है कि लंका
में सीता 11 माह रहीं। सीता मंदिर के एक ट्रस्टी एस. थियागु भी स्थानीय मान्यता के
आधार पर इसकी पुष्टि करते हैं।
शुरू में मंदिर विरोध यहां भी: नुवारा एलिया श्रीलंका
के सेंट्रल प्रोविंस में है। शिक्षाराज्य मंत्री वी. राधाकृष्णन अपकंट्री
पीपुल्स फ्रंट के लोकप्रिय नेता हैं। बीस साल पहले भव्य सीता मंदिर के निर्माण को लेकर
एक विरोध यहां भी हुआ। दरअसल स्थानीय बौद्ध सिंहली नहीं चाहते थे कि सीता के मंदिर
को बड़ी पहचान मिले। तब राधाकृष्णन ही थे, जिन्होंने तमिलों को एकजुट कर मंदिर को भव्य
रूप दिलाया। तत्कालीन पर्यटन मंत्री धर्मश्री सेनानायक मंदिर के लिए अलग से जमीन देने
को राजी हुए। यहां मोरारी बापू की कथा हुई। कुंभाभिषेकम् में श्रीश्री रविशंकर आए।
इसी महीने लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन आकर गईं। अब हर दिन कई भारतीय यहां आते हैं। यह बात और है कि भारत में अयोध्या का राम मंदिर अब भी निर्माण के इंतजार में है और राम एक बदशक्ल टेंट में पनाह लिए हुए हैं।
हर महीने श्रीलंका में पोएडे यानी
पूजा का एक दिन तय है। इस दिन देशभर के मदिरालय बंद रहते हैं और लोग शाकाहार पर जोर
देते हैं। सीता अम्मन टेंपल में तब सबसे ज्यादा चहलपहल होती है। सैकड़ों पर्यटक भी स्थानीय
श्रद्धालुओं के साथ मिथिला के राजा जनक की बेटी और अयोध्या के राजा राम की अर्धांगिनी
सीता की कहानी रावण की लंका के इस कोने में आकर सुनते हैं और बुराई पर अच्छाई की जीत
की प्रतीक राम-रावण के युद्ध की कथा स्मृतियों में ताजा हो जाती है। जनवरी में पोंगल
के एक महीने पहले से तमिल समाज के गांव-गांव में भजन गाए जाते हैं। 15 जनवरी को पूर्णाहुति
पर शोभायात्रा निकलती है। राम के दूत के रूप में हनुमानजी ने यहीं अशोक वाटिका में
मुद्रिका भेंट की थी। यह दिन रिंग फेस्टीवल के रूप में प्रसिद्ध है।
अगले दिन हम दोपहर में निकले। रास्ते में कैंडी नाम का एक शहर है, जहां के एक पुराने बौद्ध मंदिर में जाने का अवसर मिला। इस मंदिर के पत्थर बता रहे थे कि ये करीब हजार साल पुराने तो होंगे ही। दो लोगों को भीतर जाने की एवज में श्रीलंका की मुद्रा में 1500 रुपए लगे। बुद्ध का धर्म भारत की तुलना में यहां के सिंहली मूल निवासियों ने बहुत अच्छी तरह से सहेजा हुआ है। सबसे पहले मौर्य सम्राट अशोक के बेटे-बेटी महेंद्र और संघमित्रा बाेधि वृक्ष का अंश लेकर आए थे। मंदिर के भीतर पीतल की प्लेटों में सदियों पुराने वे वृत्तांत दर्ज थे, जब भारत से बुद्ध के दांतों के अवशेष लेकर भिक्षु गए होंगे। चौराहों और तिराहों पर बुद्ध की शानदार मूर्तियां दिखाई दीं, जिनका रखरखाव भारत के तिराहों-चौराहों पर सजी नेताओं की मूर्तियों से कहीं ज्यादा बेहतर था। कैंडी के रास्ते के शहरों में नई मस्जिदें भी आकार ले रही थीं। नुवारा एलिया में भी मेनरोड पर एक मस्जिद थी। जबकि तीस हजार आबादी के इस छोेटे से शहर में बहुत कम मुस्लिम आबादी है।
बहुत खूब लिखा है विजय मनोहर जी आपने.
ReplyDeleteमैं भी इस जगह गया था. श्रीलंका में सीता और भारतीयों के प्रति ठीक नज़रिया नही अपनाया जा रहा. में भी 2 साल पहले यहां गया था, टैब सीता माता मंदिर उपेक्षित था. अब शायद हालात बदल रहे हैं
बहुत खूब लिखा है विजय मनोहर जी आपने.
ReplyDeleteमैं भी इस जगह गया था. श्रीलंका में सीता और भारतीयों के प्रति ठीक नज़रिया नही अपनाया जा रहा. में भी 2 साल पहले यहां गया था, टैब सीता माता मंदिर उपेक्षित था. अब शायद हालात बदल रहे हैं